नयी दिल्ली, 9 मई (एजेंसी)
भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी में 7.82 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि मुसलमानों की आबादी में 43.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिससे पता चलता है कि देश में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के हालिया कार्य दस्तावेज में यह बात कही गई है।
‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी : एक राष्ट्रव्यापी विश्लेषण (1950-2015)’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आबादी में जैन समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी 1950 में 0.45 प्रतिशत थी जो 2015 में घटकर 0.36 प्रतिशत रह गई। ईएसी-पीएम की सदस्य शमिका रवि के नेतृत्व वाली एक टीम द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया कि 1950 से 2015 के बीच बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी 84.68 प्रतिशत से घटकर 78.06 प्रतिशत रह गई। इसमें कहा गया कि 1950 में देश में मुसलमानों की आबादी 9.84 प्रतिशत थी और 2015 में बढ़कर यह 14.09 प्रतिशत हो गई, जो संबंधित अवधि में 43.15 प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार, ईसाइयों की आबादी 2.24 प्रतिशत से बढ़कर 2.36 प्रतिशत हो गई और संबंधित अवधि में इसमें 5.38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें कहा गया कि 1950 में सिखों की आबादी 1.24 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2015 में 1.85 प्रतिशत हो गई तथा संबंधित अवधि में यह 6.58 प्रतिशत की वृद्धि है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पारसी आबादी में 85 प्रतिशत की भारी कमी आई है।
सांप्रदायिक विभाजन की कोशिश : विपक्ष
विपक्षी नेताओं ने बृहस्पतिवार को भाजपा पर उस रिपोर्ट को लेकर सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया, जिसमें भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी घटने का दावा किया गया है। भाकपा महासचिव डी राजा और राजद नेता तेजस्वी यादव ने जनगणना नहीं कराने पर केंद्र सरकार की आलोचना की और कहा कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की रिपोर्ट ‘विवाद उत्पन्न कर वोट हासिल करने का प्रयास है।