संजीव कुमार शर्मा
अन्तोन पाव्लाविच चेख़व का नाम सुनते ही 19वीं सदी के रूस की तस्वीर दिमाग में उभरने लगती है। सरल भाषा में लिखी उनकी कहानियां, नाटक और व्यंग्य, उस दौर के रूसी समाज का सच्चा आईना हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने एक साधारण व्यक्ति की ज़िन्दगी, उसके सुख-दुख, आकांक्षाओं और हताशाओं को बारीकी से पेश किया है, जो पाठकों को हंसाती भी हैं और उन्हें करुणामई भी कर देती हैं।
डॉ. पंकज मालवीय द्वारा अनुवादित और सृष्टि प्रकाशन द्वारा दो भागों में प्रकाशित पुस्तक ‘थिएटर के बाद’ को एक उत्कृष्ट कृति कहना अतिशयोक्ति न होगा। दुनियाभर में लोकप्रिय, चेख़व की बेहतरीन 120 रचनाओं को हिन्दी भाषा में हम सब के समकक्ष लाना एक अत्यंत सराहनीय कार्य है। किसी विदेशी भाषा से अनुवाद करने के लिए केवल उस भाषा का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसके लिए अनुवादक को उस समाज के लोगों के रहन-सहन, व्यवहार, संस्कारों, रीति-रिवाजों की भी गहन समझ होनी चाहिए। और डॉक्टर पंकज मालवीय अपने इस दायित्व को निभाने में पूर्णतः सफल रहे हैं। अनुवाद इतना शानदार है कि लगता है कहानियां मूल रूप से हिंदी में ही लिखी गई हों।
हालांकि इस पुस्तक में शामिल सभी कहानियां प्रेरणा से भरपूर है, परंतु कुछ कहानियां तो दिल को छू लेने वाली हैं। कहानी ‘भोलापन’, में जूलिया वस्सीलेव्ना की अति सहजता-सरलता का चित्रण है। और यह संदेश देती है कि दुनिया में इतना दुर्बल हो कर, खामोशी व भोलेपन से नहीं रहा जा सकता। ‘भिखारी’ में लुशकोव नाम के आलसी व पियक्कड़ भिखारी को सुधारने की कोशिश में एक वकील लकड़ी काटने का काम देता है। परंतु वकील की बावर्ची तरस खा कर स्वयं ही यह काम कर देती है। जिससे प्रभावित होकर भिखारी एक अच्छा इंसान बन जाता है। ‘कुत्ते वाली महिला’ में, अपने बेप्यार विवाहों में बंधे द्मित्री और अन्ना, के बीच अनैतिक संबंध विकसित हो जाते हैं। यह कहानी प्रेम, विश्वासघात, और असली प्यार के महत्वपूर्ण पहलुओं को बयां करती है। इसी तरह ‘वांका’ में छोटा बच्चा वांका अपने दादाजी को एक भावुक पत्र लिखता है और अपनी दुःखद परिस्थितियों का वर्णन करता हुए अपने गांव लौटने की इच्छा व्यक्त करता है। कहानी हमें गरीब बच्चों की कठिनाइयों और पारिवारिक स्नेह के महत्व को उजागर करती है। ‘प्रतिशोध’ में, एक धोखा खाया आदमी अपनी बेवफा पत्नी और उसके प्रेमी से बदला लेने की सोचता है। मगर गहराई से सोचने पर, उसे बदला लेना निरर्थक लगने लगता। कहानी सिखाती है कि क्रोध को त्यागना ही सच्ची शांति और सुलह का मार्ग है। कहानी ‘थिएटर के बाद’ में 16 वर्षीय प्रमुख पात्र नादिया दो व्यक्तियों से प्रेम करती है और भावनात्मक उलझनों में उलझी तथा जज्बातों से लड़ती हुई निर्णय लेने के लिए संघर्ष करती है। सरल भाषा में लिखी और उत्कृष्टता से मुद्रित इस पुस्तक में सभी कहानियां एक से बढ़कर एक हैं।
पुस्तक : थिएटर के बाद भाग-1, 2 अनुवादक : डॉ. पंकज मालवीय प्रकाशक : सृष्टि प्रकाशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : क्रमश: 385, 328 मूल्य : क्रमश: रु. 325, 295.