जन संसद की राय है कि किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में किसी प्रत्याशी के लिये निर्विरोध चुने जाने की परिस्थितियां बनाना जनतंत्र के साथ छल है। जब जनता ने उसे चुना नहीं तो वह जन-प्रतिनिधि कैसे हो सकता है?पुरस्कृत पत्र
दबाव मुक्त हो
लोकतंत्र का मूल मंत्र है जनता की इच्छा और उसे व्यक्त करने का एक मात्र माध्यम है चुनाव। किन्तु निर्विरोध निर्वाचन जनता की इच्छा न होकर एक तरह का मनोनयन है। जो नेता जनता के बीच गया ही नहीं वह जनता के हित की बात कैसे करेगा। अतः नामांकन प्रक्रिया को निष्पक्ष, पारदर्शी एवं सत्ता, धनबल, बाहुबल आदि के दबाव से मुक्त करना ज़रूरी है। इसके लिए यदि नाम वापसी के बाद किसी भी कारण से एक ही उम्मीदवार बचे या राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों का उम्मीदवार न हो तो नामांकन प्रक्रिया फिर से शुरू की जाये। अगर तब भी एक ही उम्मीदवार रहे तो नोटा और उस उम्मीदवार के बीच चुनाव हो।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं
चुनाव प्रत्याशियों का निर्विरोध चुने जाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं है। सत्तारूढ़ पक्ष द्वारा विपक्षी सदस्यों के प्रति साम, दाम दंड व भेद की नीति के सहारे नामांकन पत्र वापस लेने के लिए दबाव बनाना लोकतांत्रिक मर्यादा का हनन है। मतदाताओं का अपने इच्छित प्रतिनिधियों के चुनाव का मौका हाथ से फिसल जाता है। मतदाताओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए चुनाव आयोग को निर्विरोध चुनाव प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
अनिल कोशिक, क्योड़क, कैथल
संविधान का पालन हो
लोकतंत्र में निर्वाचन प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है। लोकतंत्र में निर्विरोध निर्वाचन एक तरह से चुनावी मैदान में क्लीन स्वीप की तरह होता है। निर्विरोध निर्वाचन तभी सार्थक होता है जब किसी उम्मीदवार के प्रभुत्व, उसके वर्चस्व और राजनीतिक छवि के चलते अन्य लोगों का मैदान में टिक पाना संभव नहीं होता है। इस बार निर्विरोध निर्वाचन चर्चा में है। वह इसलिए कि इस प्रक्रिया में राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक दबावों का प्रयोग हुआ है, जो लोकतांत्रिक नहीं है। निर्विरोध निर्वाचन तभी माना जाए जब समस्त प्रक्रियाओं में संवैधानिक प्रावधानों का पालन हो।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
लोकतंत्र के लिए खतरा
कुछ राज्यों में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों का निर्विरोध चुने जाना लोकतांत्रिक नहीं कहलाएगा। माना जा रहा है कि विपक्ष के सदस्यों पर दबाव डालकर अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर किया। ऐसे में उस क्षेत्र के मतदाताओं का अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने का मौका हाथ से चला गया। बेशक इससे पहले भी सांसद निर्विरोध चुने जाते रहे हैं परंतु अबकी बार इस तरह निर्विरोध चुना जाना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। लोकतंत्र का मतलब होता है कि मतदाता बिना किसी दबाव के अपनी पसंद का उम्मीदवार चुने।
शामलाल कौशल, रोहतक
अप्रत्याशित घटनाक्रम
भाजपा की बहुमत वाली केन्द्रीय सरकार ने अब की बार चार सौ पार का नारा दिया है। पार्टी इस आंकड़े को हासिल करने का भरसक प्रयास भी करती नज़र आ रही है। लेकिन बिना किसी बड़ी खासियत के कुछ पार्टी उम्मीदवारों का कई राज्यों में निर्विरोध चुना जाना आश्चर्यजनक है। एमपी, एमएलए की एक-एक सीट पर पार्टियों में कड़ी जोर आजमाइश हो रही है फिर कुछ सीटों पर अन्य प्रत्याशियों का आत्मसमर्पण अप्रत्याशित घटना है। चुनाव आयोग को पारदर्शी चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
लोकतंत्र का प्रहसन
भारत में लोकसभा चुनाव हेतु आम चुनाव का मौसम है। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के निर्विरोध चुने जाने के समाचार लगातार आ रहे हैं। इस निर्विरोध की प्रयोगबाजी करने वाली सत्तारूढ़ पार्टी की विशेष भूमिका साफ दिखाई दे रही है। यह अन्य राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को चुनावी मैदान से हटाना भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक प्रवृत्ति है। अगर कोई भी सत्तारूढ़ दल तंत्र-धन-बल तथा डराने-धमकाने के तौर-तरीकों का प्रयोग कर अन्य प्रत्याशियों के नाम वापस लेने को मजबूर कर रहे हैं। ये भारत के लोकतंत्र का प्रहसन (परिहास) हो रहा है।
रमेश चन्द्र पुहाल, पानीपत