अली खान
देशभर में अवैध होर्डिंग की समस्या ने लोगों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। दरअसल, मुंबई में गत 13 मई को तेज आंधी आई। जिससे घाटकोपर में 100 फुट ऊंचा और 250 टन वजनी लोहे का होर्डिंग एक पेट्रोल पंप पर जा गिरा। इस दौरान कुछ कारें, टू-व्हीलर्स और पैदल यात्री इसकी चपेट में आ गए। हादसे में 16 लोगों की मौत हो गई, जबकि 74 लोग घायल हो गए। जांच में सामने आया कि ये होर्डिंग अवैध था और 15 हजार वर्ग फुट से ज्यादा क्षेत्रफल में लगा था। इस होर्डिंग का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो चुका था। उल्लेखनीय है कि होर्डिंग लगाने के लिए उस एजेंसी की अनुमति जरूरी होती है जिसकी भूमि पर होर्डिंग लगाना है। मुंबई में कई तरह की जमीनें हैं, जैसे कलेक्टर लैंड, सॉल्ट पैन लैंड, मुंबई पोर्ट ट्रस्ट लैंड व बीएमसी लैंड आदि। इसलिए अगर कोई किसी जमीन पर होर्डिंग लगा रहा है तो उसे संबंधित लैंड अथॉरिटी से अनुमति लेनी पड़ती है। साथ ही बीएमसी की इजाजत भी जरूरी है।
सवाल है कि इतने बड़े आकार के होर्डिंग लगाने की अनुमति क्यों दी गई? अब जब इतना बड़ा हादसा हो गया है तो किन-किन पर कार्रवाई की जाएगी? भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करने को क्या-क्या प्रयास किए जाएंगे? ऐसे प्रश्न आम आदमी के दिमाग में कौंधने स्वाभाविक हैं।
देश के कमोबेश सभी शहर अवैध होर्डिंग की समस्या का सामना कर रहे हैं। शहरों की शायद ही ऐसी कोई लोकेशन हो जो होर्डिंग व बैनर से अछूती हो। ये होर्डिंग, जहां ऐतिहासिक धरोहरों व इमारतों के सौंदर्य को ढक रहे हैं, वहीं लोगों की जान पर भी आफत बन रहे हैं। देश के सभी शहरों की सड़कें अवैध होर्डिंग से पटी हुई हैं। कई नगरों में ऐसे होर्डिंग हटाने की कवायद की गई, लेकिन समस्या जस की तस है।
अवैध होर्डिंग की समस्या सड़क हादसों की वजह बन रही है। सड़कों पर लगे होर्डिंग के चलते वाहन चालकों को साइड देखने में दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। लापरवाही से कई बार फुटपाथ पर होर्डिंग को रख दिया जाता है जिसके चलते पैदल चलने वाले लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में लोग सड़कों पर चलने के लिए मजबूर हो जाते हैं, इस कारण भी कई बार हादसा हो जाता है।
देश के उस बहुचर्चित हादसे को कैसे भुला सकते हैं जिसमें अवैध होर्डिंग ने एक युवती की जान ले ली थी। दरअसल, चेन्नई में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली सुबाश्री अपने ऑफिस से घर की ओर जा रही थी, उसी दौरान रास्ते में एक राजनीतिक दल का अवैध रूप से लगा होर्डिंग युवती के ऊपर गिर गया था। होर्डिंग के गिरते ही पीछे की ओर तेजी से आ रहे एक टैंकर ने युवती को कुचल दिया, जिससे उसकी मौत हो गई थी। यह महज एक चर्चित हादसा है, इसके अलावा भी देश में हर रोज ऐसे हादसे सुर्खियां बटोरते हैं।
ऐसे में प्रश्न खड़ा हो जाता है कि आखिर अवैध होर्डिंग के मकड़जाल से मुक्ति कैसे मिले? सच्चाई यह है कि अगर सरकारी महकमा ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाए, तो इस विकराल रूप लेती समस्या से निपटा जा सकता है। राजनीतिक दल चुनावों में रैलियों व कार्यक्रमों के लिए जगह-जगह होर्डिंग व बैनर लगा देते हैं। उन्हें न किसी नियम की परवाह है और न किसी कानून की। इसके अतिरिक्त होर्डिंग-बैनर बनाने बनाने वाली एजेंसियों के सिर पर राजनीतिक दलों का हाथ होने से प्रशासन उनके आगे बेबस नजर आता है। इस परंपरा को खत्म किए जाने की जरूरत है, इसके बिना होर्डिंग्स के मकड़जाल को तोड़ पाना बेहद मुश्किल होगा।
आज जरूरत यह है कि यदि कोई भी एजेंसी बिना पंजीकरण के होर्डिंग लगाती है तो संबंधित एजेंसी के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अलावा सभी एजेंसियों को सख्ती के साथ हिदायत दी जानी चाहिए कि सड़कों के किनारे किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं करें। अगर कोई ऐसा करता पाया जाए तो उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई हो।
आज शहरों की सूरत बिगाड़ने में होर्डिंग्स बड़ी भूमिका निभा रहे हैं जिसे सुधारने के लिए शहरों में होर्डिंग लगाने के लिए महानगरों की तर्ज पर कमेटी का गठन किया जाना चाहिए। कमेटी की अनुमति के बाद ही होर्डिंग्स लगाये जाने चाहिए। आजकल शहरों में स्कूल, कोचिंग संस्थान और अन्य प्रतिष्ठान हर सरकारी और निजी भवन को विज्ञापन स्थल का रूप दे रहे हैं। ये बेतरतीब ढंग से अपने संस्थानों का प्रचार-प्रसार करते हैं। ऐसे संस्थान पैसा बचाने के चक्कर में बीच रोड पर और सड़क किनारे अवैध होर्डिंग लगाकर प्रचार-प्रसार करते हैं। ऐसे में इनके विरुद्ध भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। यदि अब भी समय रहते नहीं चेते तो निकट भविष्य में मुंबई में घटित घटना की पुनरावृत्ति को झेलने के लिए बेशक हमें तैयार रहना होगा।