अशोक गौतम
स्वास्थ्य लाभ के बहाने मार्निंग टॉक करता आज भी निकला था कि रास्ते में घड़ियाल मिल गया। जनाब भी मार्निंग वॉक करने के बहाने मार्निंग टॉक करने निकले थे। यही तो वक्त होता है जब चंद लोग सड़क में चलते हुए मिल जाते हैं, उनसे दुआ-सलाम हो जाती है। वर्ना शेष सारा दिन तो खुद ही खुद की सलामती की दुआएं करते रहो।
घड़ियाल मेरे हाल-चाल पूछता मेरे साथ साथ चलने लगा तो मैंने उसकी आंखों में झांका। वैसे मैं बहुधा औरों की जेबों में झांका करता हूं। उसकी आंखों में झांका तो लगा, यार! इसकी आंखों से तो आंसू गायब हैं तो अचंभा हुआ। घड़ियाल की आंखें बिन आंसुओं के? मुझे लगा, उसकी आंखों में कहीं कोई दिक्कत विक्कत न हो गई हो। सो उससे पूछ बैठा, ‘घड़ियाल भाई! तुम्हारी आंखें कैसी हैं? आखिर क्या हो गया तुम्हारी आंखों को? मेरी समझ से इससे पहले कि आंखों का कुछ का कुछ हो जाए किसी अच्छे से डॉक्टर को अपनी आंखें दिखा लो।’
‘ऐसा कुछ नहीं साहब जैसा आप समझ रहे हैं। पर इसके लिए दिल से थैंक यू कि आपने कम से कम मेरी आंखों के बारे में सोचा। मेरी आंखें बिल्कुल ठीक हैं। असल में क्या है न पिछले हफ्ते एक नेताजी मेरे घर आए। दोनों हाथ जोड़े अपनी टोपी मेरे चरणों में रख बोले, ‘रे घड़ियाल भाई! अब मेरी जीत तुम्हारे हाथ। तुम तो जानते ही हो कि चुनाव के दिन हैं। चुनाव के दिनों में बात-बात पर जो नेता जनता के आगे जितना रोता है वह उतना ही कुर्सी पर अगले पांच सालों के लिए कुंभकरण हो सोता है। चुनाव प्रचार के दौरान जनता के आगे बात-बात पर रोते-रोते मेरे आंसू खत्म हो गए हैं। अब मैं तुम्हारी शरण में आया हूं।’
‘तो कहिए मैं आपके किस तरह काम आ सकता हूं?’ मैंने द्रवित हो नेताजी से पूछा तो वे बोले, ‘कुछ दिनों के लिए अपने आंसू उधार दे दो तो चुनाव खत्म होते ही मैं तुम्हें तुम्हारे आंसू सूद सहित लौटा दूंगा।’
‘पर नेता पर विश्वास कौन करे? कल को कहीं ऐसा न हो कि तुम मुझसे मेरे आंसू उधार लेकर लौटाने से मुकर जाओ और मैं सदियों से चली आ रही कहावत से हाथ धो बैठूं,’ मैंने दो टूक कहा तो वे बोले, ‘मैं जनता से धोखा कर सकता हूं पर अपने मौसेरे भाई से नहीं। मुझ पर विश्वास नहीं तो लो, मैं गारंटी देता हूं। ऐसी-वैसी गारंटी नहीं, नेशनल नेता की गारंटी है,’ और मैंने जनहित में अपने आंसू उन्हें दान में दे दिए। मेरी ही क्या, मेरी तमाम बिरादरी की आंखें इन दिनों बिन आंसुओं के हैं बंधु! हमारे आंसुओं से किसी का भला हो जाए तो हम घड़ियाली आंसुओं को बदनाम घड़ियालों को और चाहिए भी क्या!’ घड़ियाल ने अपनी आंखों के सूखे आंसुओं का किस्सा सुनाया तो मेरी आंखों में सच्ची के आंसू आ गए।