दलेर सिंह/हप्र
जींद (जुलाना), 27 मई
राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि महिलाओं के साथ अत्याचार करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। सभ्य समाज के निर्माण के लिए महिलाओं का आदर करना बहुत जरूरी है। समाज को चाहिए कि महिलाओं को आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करने के साथ-साथ पूरा सम्मान भी करें। राज्यपाल दत्तात्रेय सोमवार को चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय (सीआरएसयू) जींद में चतुर्थ दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश डॉ. सूर्यकांत भी विशेष रूप से मौजूद रहे। राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत का युवा बहुत ही ऊर्जावान है। पूरे विश्व की निगाहें भारत की युवा पीढ़ी पर लगी हैं। भारत का युवा दुनिया के अन्य देशों की जरूरत बन रहा है। युवाओं में नवाचार के साथ-साथ हर पल कुछ नया सीखने की भावना का होना जरूरी है। युवा केवल महज अपने तक रोजगार पाने की न सोचकर अन्य को रोजगार देने का लक्ष्य निर्धारित कर मेहनत करें।
राज्यपाल ने विद्यार्थियों से आह्वान करते हुए कहा कि वे जहां भी जाएं, अपने अभिभावकों, समाज व राष्ट्र के साथ-साथ अपने विश्वविद्यालय को कभी न भूलें, जहां से उन्होंंने शिक्षा-दीक्षा ली है। यदि किसी इंसान ने धन को खो दिया समझो कुछ नहीं खोया, यदि स्वास्थ्य खोया है तो समझो कुछ नुकसान हुआ है और यदि चरित्र को खोया है तो समझो सब कुछ खो दिया है। राज्यपाल ने कहा कि आज का युग इन्फार्मेशन एंड टेक्नोलॉजी का युग है। एआई, मशीन लर्निंग जैसी नूतन टेक्नोलॉजी ने विश्व का परिदृश्य बदल दिया है। अपने-अपने विषय में नवीनतम टेक्नोलोजी से जुड़ कर क्रिएटिव इनोवेशन तथा स्टार्टअप्स सृजित करने के लिए आपको कमर कसनी होगी। यदि आप चूक गए तो पीछे रह जाएंगे। राज्यपाल दत्तात्रेय ने दीक्षांत समारोह में 2021 से 2023 तक के 744 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की, इनमें 509 छात्राएं शामिल थीं। विभिन्न विषयों के 21 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए, जिनमें 18 छात्राएं शामिल रहीं।
उन्होंने समारोह में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए पूनम सूरी को पीएचडी की मानद उपाधि से नवाजा। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के वीसी व कुलसचिव समेत अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
जिसे मंजिल का जुनून है, वे कभी मशविरा नहीं लेते : न्यायाधीश डॉ. सूर्यकांत
दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि गुणवत्तायुक्त शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है। शिक्षा नैतिक मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। इसी से ही आने वाली पीढ़ी सभ्य और समाज के प्रति समर्पित बनेगी। उन्होंने कहा कि देश की उन्नति के लिए पूर्ण संसाधनों का होना जरूरी है, जिनमें इंसान के अंदर दक्षता, निपुणता और कुशलता मुख्य रूप से शामिल है। न्यायाधीश ने कहा कि देश को समृद्धशाली बनाने के लिए निरंतर प्रगति जरूरी है। न्यायाधीश डॉ. सूर्यकांत ने संबोधन के माध्यम से अपने विद्यार्थी जीवन की यादें साझा की। भले ही उस समय संसाधनों का अभाव था, लेकिन उनमें सीखने की प्रबल भावना थी। ग्रामीण परिवेश से शिक्षा लेकर वे जिस मुकाम तक पहुंचे हैं, उसमें उनके शिक्षकों का अहम योगदान है, जिनकी दुआएं अब भी उनके साथ रहती हैं। उन्होंने दो पंक्तियों के साथ विद्यार्थियों से कड़ी मेहनत करने का आह्वान किया – कौन बताता है समंदर का रास्ता नदिया को, जिसे मंजिल का जुनून है, वे कभी मशविरा नहीं लेते।