भारत के उत्तर पश्चिमी, मध्य, हिमालयी अंचल और महाराष्ट्र में इन दिनों झुलसाने वाली ग्रीष्म लहर चल रही है। मंगलवार को हरियाणा के सिरसा और राजस्थान के चुरू में पारा 50 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया। पंजाब, हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र के अधिकांश भाग में दिन का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है।
अनेक सूबों में अस्पतालों में गर्मी संबंधित मामलों में उछाल आया है और कुछ राज्यों में लू लगने से मौतें भी दर्ज हुई हैं। फिल्मी सितारे शाहरुख खान को भी गर्मी से पीड़ित होने के बाद अहमदाबाद के अस्पताल में दाखिल होना पड़ा। स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के अलावा तीव्र गर्मी का असर अनेकानेक क्षेत्रों की उत्पादकता पर होने लगा है, जिसका आगे अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव होगा। महज यह हिदायतें जारी करना कि लोग घर के अंदर बने रहें और पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहें, नाकाफी है। तापमान के उछाल को नाथने के लिए हमें बृहद नीति बनाने की जरूरत है, जो आज की तारीख में नदारद है।
अलबत्ता तापमान संबंधी सटीक पूर्वानुमान और चेतावनियों के साथ मौसम विभाग का काम प्रशंसनीय है। एक मार्च को इस विभाग ने मार्च से मई की अवधि के लिए तापमान संबंधी अग्रिम पूर्वानुमान जारी किया था। इसमें देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक रहना बताया गया था। एक अप्रैल को जारी किए संशोधित पूर्वानुमान में जून माह तक के लिए सामान्य से अधिक गर्मी रहने का अनुमान वाले अंचलों की इलाकावार जानकारी अधिक तफ्सील से दी गई। इसमें चेतावनी दी गई कि लंबे समय तक खिंचने वाली अत्याधिक गर्मी के सत्र से शरीर में जल की कमी हो सकती है और बुनियादी तंत्र जैसे कि पॉवर ग्रिड और परिवहन व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। इन चुनौतियों का हल निकालने के लिए, यह जरूरी है कि प्रशासन सक्रिय होकर उपाय करे। सरकारी की एक अन्य एजेंसी राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, मौसम में बदलावों एवं मानव स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम संचालित करती है।
राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र द्वारा जारी परामर्श पत्र में एक भाग गर्मी संबंधित रोग पर है, इसमें ध्यान का केंद्र लोगों की भीड़ वाले आयोजन और खेल प्रतियोगिताओं पर है जैसे कि इंडियन प्रीमियर लीग, जो 22 मार्च को शुरू होकर 26 मई को खत्म हुई। इस दौरान सात चरणों वाली लोकसभा चुनावी प्रक्रिया 19 अप्रैल से आज तक चलनी है। अत्यधिक गर्मी झेल रहे इलाकों में मतदाताओं की संख्या उम्मीद से कम रही। कुछ मौकों पर चुनाव प्रचार कर रहे प्रत्याशी तीव्र तापमान की वजह से बेहोश भी हुए हैं। बेशक आईपीएल के मैच देर शाम को शुरू होते हैं लेकिन अधिकतर वक्त दर्शक आमतौर पर दोपहर से ही दीर्घा में जमने शुरू हो जाते हैं। इस समय तापमान सबसे ज्यादा उरोज पर होता है और खिलाड़ी भी अभ्यास दिन में करते हैं।
बड़ी भीड़ वाले आयोजनों के लिए जारी हिदायतों की भांति शहरों को अपनी ग्रीष्म कार्य योजना बनाकर अमल में लाना चाहिए। इस किस्म की योजनाओं में लू का स्वास्थ्य पर प्रभाव संबंधी सार्वजनिक जागरूकता बनाना, जरूरत बनने पर गर्मी संबंधित रोग से निपटने को पूर्व तैयारी करना शामिल हो। संबंधित तमाम सरकारी एजेंसियों को आपसी तालमेल बनाकर, लोगों में लू लगने की संभावना में कमी लाने संबंधी जागरूकता बनाना एवं निदान उपाय अपनाने का अभियान चलाना चाहिए। छांव देने वाले ढांचे तैयार किए जाने चाहिए। खुले में शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों के काम करने के घंटे इस तरह तय हों ताकि वे तीव्र धूप का शिकार बनने से बचें।
केंद्र सरकार के कहने पर भीड़भाड़ वाले आयोजनों के लिए जिस किस्म की निर्देशावली बनी है, वैसी बहुत से शहर और सूबे अपने यहां नहीं कर पाए। जबकि अहमदाबाद का प्रमाण प्रत्यक्ष है, जहां पर 2013 से अपनाई कार्य योजना से तीव्र गर्मी संबंधित मृत्यु दर में कमी अाई है। तेलंगाना और ओडिशा ने भी अपनी तापमान कार्ययोजना बना रखी है लेकिन इन योजनाओं का असर इन पर अमल करने की दक्षता पर निर्भर करता है।
यह तथ्य है कि शहरों में गर्मी की तीव्रता स्थानीय कारक जैसे कि जनसंख्या घनत्व, कंक्रीट ढांचों की सघनता, पेड़ों की संख्या में कमी इत्यादि से भी संबंधित है। कई सालों से वैज्ञानिक ‘शहरी गर्म टापू’ के बारे में कहते आए हैं, जिसमें शहर का एक भाग विशेष अन्य इलाकों की अपेक्षा ज्यादा तप जाता है। इन ‘शहरी गर्म टापुओं’ के पीछे स्थानीय अवयव जैसे कि हरियाली और तालाबों की कमी, स्थानीय औद्योगिक गतिविधियां, गर्मी सोखने वाले कंक्रीट के भवन, हवा के आरपार निकलने के इंतजाम में कमी और एयर कंडीशनरों से निकली गर्म हवा तापमान बढ़ाती है। मसलन, दिल्ली की घनी आबादी वाला सीताराम बाज़ार हो या फिर कनाट प्लेस या भीकाजी कामा प्लेस, वहां पारा आसपास के इलाकों से कुछ अधिक ही दर्ज होता है, जिससे कि यह भाग ‘शहरी गर्म टापुओं’ में तबदील हो जाते हैं।
भारत के 114 शहरों पर आधारित आईआईटी भुवनेश्वर द्वारा किया हालिया सर्वेक्षण बताता है कि शहरों में गर्मी की तीव्रता भारत के शेष भूभाग की आबादी वाले इलाकों की अपेक्षा लगभग दोगुणी महसूस होती है। उत्तर-पश्चिमी, उत्तर-पूरबी और दक्षिणी भारत में भूमि सतह के रात्रि-तापमान में बढ़ोतरी अधिक पाई गई है। आईआईटी-गांधीनगर द्वारा करवाए अध्ययन में चेतावनी दी गई कि तेजी से हो रहे शहरीकरण की वजह से बने ‘शहरी गर्म टापुओं’ से भारतीय नगरों में गर्मी की तीव्रता और बदतर होगी।
पर्याप्त सबूत बताते हैं कि इस असर को नियंत्रित करने के लिए सरकारी एजेंसियाें को गर्मी-कार्य योजना शुरू करनी ही होगी। यह देखते हुए कि ग्रीष्म लहर के दौरान रात के तापमान में इजाफा काफी हुआ है, अप्रत्यक्ष ठंडक उपाय करना जैसे कि हवा की आरपार निकासी, छांव बनाना, गर्मीरोधी एवं सूर्य किरण परावर्तित करने वाली परत चढ़ाना इत्यादि से भवन के अंदरूनी तापमान को नीचे लाया जा सकता है। भवन निर्माण संहिता में ऐसी निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करने को बढ़ावा देना चाहिए, जो कम गर्मी सोखने वाली हो। साथ ही यह खूबी लंबे वक्त तक कायम रखने वाली हो ताकि गर्मी सोखने से बने तापमान का स्तर नीचे लाया जा सके। तालाबों की उपस्थिति और हरियाली रात्रिकालीन गर्मी में अतिरिक्त कमी लाने में मददगार हो सकती है। गर्मीरोधक योजना में सुझाव दिया गया है कि निम्न आयवर्ग के घरों की छत ठंडी रहने वाली सामग्री से बनी हो ताकि कमरे के अंदर का तापमान नीचा रहे।
हमें ऐसी जन कल्याणकारी नीतियों की जरूरत है जो इस किस्म के गर्मीरोधक उपायों की रूपरेखा और क्रियान्वयन हेतु समन्वित कार्ययोजना को बढ़ावा देते हों। यह नीतियां अनेकानेक क्षेत्रों के लिए विकसित की जाएं जैसे कि स्वास्थ्य, नगर योजना, पर्यावरण, परिवहन, शिक्षा, श्रम, बुनियादी ढांचा, निर्माण, वित्त इत्यादि। क्रियान्वन के लिए, नगर निगमों और शहरी निकायों को तकनीकी एवं वित्तीय सहायता मुहैया करवाई जाए। वैज्ञानिक बिरादरी, स्थानीय लोगों और सिविल सोसायटी को साथ जोड़ना अहम है। भीषण गर्मी में बढ़ोतरी से निपटने के उपाय केवल मौसम विभाग या स्वास्थ्य क्षेत्र के जिम्मे छोड़ने से यह काम नहीं बनने वाला।
लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के जानकार हैं।