सौरभ मलिक/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 31 मई
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसले में कहा कि भर्ती में सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के लाभ को सीमित करना तथा हरियाणा के मूल निवासी के आधार पर 20 अंक देना संविधान का उल्लंघन है। इसके साथ ही एक खंडपीठ ने हरियाणा सरकार के भर्ती आदेश को खारिज कर दिया। जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा तथा जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के आधार पर दिए गए बोनस अंकों को रद्द कर दिया। साथ ही इसे देश के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 तथा 16 का उल्लंघन बताया। इसके साथ ही, खंडपीठ ने ग्रुप सी तथा डी के पदों पर भर्ती के लिए केवल सामान्य पात्रता परीक्षा (सीईटी) में प्राप्त अंकों के आधार पर नयी मेरिट सूची तैयार करने के निर्देश दिए।
इससे पहले, एक याचिका की सुनवाई में, हाईकोर्ट ने सहायक अभियंताओं की भर्ती के विज्ञापन में सामाजिक-आर्थिक मानदंड और अनुभव तथा हरियाणा के मूल निवासी आवेदकों को 20 अंक देने से संबंधित क्लॉज काे निलंबित कर दिया।
हरियाणा राज्य और अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ यह याचिका अर्पित गहलावत ने वकील सार्थक गुप्ता के माध्यम से दायर की थी। इसमें उन्होंने अन्य बातों के अलावा, बिजली विभाग में सहायक अभियंताओं (इलेक्ट्रिकल काडर) के पदों को भरने के लिए 20 दिसंबर 2022 के विज्ञापन को रद्द करने की मांग की थी।
इसमें डीएचबीवीएनएल इंजीनियर्स (इलेक्ट्रिकल) विनियम, 2020 और इसी तरह के अन्य संशोधनों के विनियमन को रद्द करने के लिए निर्देश मांगे गए थे, जिसमें 100 में से 20 अंक सामाजिक-आर्थिक मानदंड और अनुभव के लिए निर्धारित किए गए थे, जो हरियाणा निवासियों के लिए थे। गुप्ता ने तर्क दिया कि इस तरह के अंक देना कुछ और नहीं बल्कि अतिरिक्त आरक्षण का एक रूप है।