महाराष्ट्र के एक गांव की वृद्ध महिला लता और अपने पति के साथ मजदूरी करके अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। जीवन सामान्य चल रहा था। एक दिन लता के पति की तबीयत अचानक खराब हो गई। डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि उनका एमआरआई स्कैन होगा जिसमें लगभग 5000 रुपये लग जाएंगे। महिला के लिए 5 हजार रुपये जुटाना मुश्किल था। किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। एक दिन महिला निराशा के भाव में बैठी थी तभी उन्हें पता चला कि उनके गांव के पास ही मैराथॉन का आयोजन हो रहा है तथा उसमें जीतने वाले को 5 हजार रुपये का पुरस्कार मिलेगा। महिला को मैराथॉन के बारे में कोई समझ नहीं थी लेकिन फिर भी उसने इसमें भाग लेने का फैसला किया। पति की जान बचाने के लिये बुजुर्ग महिला साड़ी और चप्पल में तीन किलोमीटर दौड़ गई। रास्ते में चप्पल टूटी तो उन्होंने नंगे पैर ही दौड़ना जारी रखा और मैराथॉन जीत गई। उसे अपने पति के इलाज के लिए पैसे मिल गए। लता का जीवन सच्चे प्रेम और समर्पण की मिसाल है। उनके जीवन की इस घटना पर मराठी में एक फिल्म ‘लता भगवान करे’ भी बनी है।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी