रेणु जैन
सेहत की रखवाली के लिए मशहूर साइकिल के दौर के फिर से लौटने के संकेत मिल रहे हैं। एक समय था जब भारत ही नहीं, लगभग दुनियाभर में साइकिल का बोलबाला था। क्या अब उसी साइकिल युग के लौटने की परिस्थितियां बन रही हैं? विदेशों में भी साइकिल लेन बनाने की तैयारियां जोर-शोर से चालू हैं। पेरिस की मेयर एन हिडैल्गो ने वहां के कई बड़े शहरों में साइकिल लेन बनाने का फ़ैसला लिया है। पेरिस के बीच से गुजरने वाली लगभग 1400 किलोमीटर सड़कों को केवल साइकिल के लिए सुरक्षित रखने की योजना है। हिडैल्गो ने अपने साथ कई अन्य देशों को भी जोड़ा है। अमेरिका जैसे देश में इन दिनों साइकिलों की बिक्री दोगुनी हो गई है।
मरीजों को बाकायदा डॉक्टरी सलाह
भारत में ‘कोरोना अनलॉक’ के बाद साइकिल की डिमांड तीन गुना बढ़ गई है। आप यह जानकर हैरान होंगे कि लंदन में अब डॉक्टर अपने मरीजों को पर्ची पर दवाइयों के साथ रोज 30 मिनट साइकिल चलाने की सलाह भी दे रहे हैं। दरअसल, डॉक्टरों का मानना है कि ऐसा करके वे अपने मरीजों को दवाओं के साइड इफ़ेक्ट से बचाने के साथ ही उनके दवाओं के खर्च में कटौती भी कर रहे हैं। पहले अधिकांश डॉक्टर साइकिल चलाने का सिर्फ जुबानी परामर्श देते थे, लिखकर देने का चलन तो अब शुरू हुआ है।
रिसर्च में सामने आये फायदे
विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम रिसर्च बताती हैं कि साइकिलिंग एक ऐसा व्यायाम है जिसके कई फायदे हैं। कैलोरी बर्न होने के अलावा जो पसीना निकलता है उससे शरीर के विषैले पदार्थ निकल जाते हैं। रक्त संचार प्रक्रिया बेहतर बनाने के अलावा साइकिलिंग मस्तिष्क तक रक्त पहुंचाती है। शरीर के मसल्स को लाभ पहुंचता है। नियमित साइकिलिंग से मेटाबॉलिज्म अच्छा रहता है। साइकिल चलाने से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। सुबह साइकिलिंग से डिप्रेशन तथा एंजाइटी की दिक्कतें भी दूर होती हैं।
साइकिल की खोज और विकास
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 3 जून को विश्व साइकिल दिवस घोषित किया गया। इसकी खोज के बारे में कुछ इतिहासविद कहते हैं कि 763 ई. में पहली साइकिल बनी थी, वहीं कुछ का कहना है कि 1830 में स्कॉटलैंड के एक लुहार मैकमिलन को विश्व की पहली साइकिल बनाने का श्रेय जाता है। कहा यह भी जाता है कि साइकिल का प्रचलन 10वीं शताब्दी में यूरोप में हुआ। खैर, जब कई शहरों में साइकिल की मांग बढ़ी तो इंग्लैंड, फ्रांस और अमेरिका के निर्माताओं ने इसमें कई सुधार किए तथा 1872 में इसे सुंदर रूप दे दिया। तब साइकिल शान की सवारी मानी जाने लगी।
भारत का दूसरा नंबर
चीन के बाद दुनिया में आज भी सबसे ज्यादा साइकिल भारत में बनती हैं। साल 1960 से लेकर 1990 तक भारत में ज्यादातर परिवारों के पास साइकिलें थीं। कहा जाता कि दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिलें चीन की सड़कों पर चलती हैं। यहां हर एक घर में साइकिल होती है। पूरी दुनिया में हर साल 10 करोड़ साइकिलें बनाई-बेची जाती हैं। हालांकि दुनिया की आबादी के हिसाब से साइकिलों की संख्या कम हो रही है। ऐसे में अब डॉक्टरों का कहना सुखद है कि साइकिल इंसान के दिल-दिमाग और शरीर को स्वस्थ रखती है। फिर से पूरी दुनिया का ध्यान साइकिल पर जा रहा है।
पर्यावरण सुरक्षा के लिए साइकिल को बढ़ावा
दुनियाभर की सरकारें और पर्यावरण की चिंता करने वाले लोग शहरी पर्यावरण की सुरक्षा के लिए साइकिल सवारी को बढ़ावा देने में जुटे हैं। हर साल साइकिल के नए-नए मॉडल भी बाजार में आ रहे हैं। इनमें लकड़ी ओर बांस की साइकिल, पैडल के साथ बैटरी से चलने वाली साइकिल और फोल्ड होकर एक टोकरी में रखने वाली साइकिल भी शामिल है। नीदरलैंड साइकिल को बढ़ावा देने में कई यूरोपीय देशों से आगे है। इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रांसपोर्ट पॉलिसी एनालिसिस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में करीब 37 फीसदी लोग छुट्टी के दिनों में साइकिल का इस्तेमाल कर रहे जबकि काम पर जाने के लिए सिर्फ 25 फीसदी लोग साइकिल चला रहे थे। ऐसे में नीदरलैंड सरकार साइकिल का इस्तेमाल करने वाले लोगों को टैक्स में छूट भी दे रही है। वहां प्रधानमंत्री भी साइकिल से संसद जाते हैं। इस देश में रोड एक्सीडेंट न के बराबर होते हैं। यहां देश की आबादी से ज्यादा साइकिलें हैं।
हालिया सकारात्मक प्रयास
बढ़ते प्रदूषण के चलते भारत सहित कई देश इलेक्ट्रिक साइकिलें भी बना रहे हैं। हाल ही में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में देश-दुनिया की साइकिल कंपनियों को एक मंच पर लाया गया। इस एक्सपो में करीब 170 कंपनियों ने हिस्सा लिया। टेरी संस्थान के एक शोध पर गौर किया जाये तो छोटी दूरी के सफर के लिए अगर दोपहिया या चार पहिया की बजाय साइकिल का इस्तेमाल किया जाये तो इससे देश की अर्थव्यवस्था को 1.8 खरब रुपये का लाभ होगा। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में साइकिल के लिए अलग लेन बनाने की पहल चल रही है। कई राज्य सरकारें साइकिलिंग प्रोत्साहित करने के अभियान चला रही हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले साइकिलिंग इवेन्ट्स में भी कई शहरों के साइकिलिस्ट भाग लेते हैं। अच्छी बात यह कि कोरोना के बाद युवा भी साइकिल को लेकर दिलचस्पी दिखा रहे हैं।