विनय कुमार पाठक
भगवान बुद्ध को काफी दिनों तक भटकने और तपस्या करने के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। चुनाव आयोग को सिर्फ डेढ़ महीने में ही ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। और खास बात है कि इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए चुनाव आयोग को किसी वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या नहीं करनी पड़ी। वातानुकूलित कक्ष में बैठकर ही उन्हें इस ज्ञान की प्राप्ति हुई है। और ज्ञान की प्राप्ति के लिए भगवान बुद्ध को बहुत ही त्याग करना पड़ा था पर चुनाव आयोग को किसी और के त्याग के कारण ज्ञान की प्राप्ति हुई है। मगर बुद्ध के मुखमंडल पर जो शांति दिखती है उससे कहीं अधिक शांति चुनाव आयोग के अधिकारियों के मुखमंडल पर दिख रही थी जब उन्होंने बड़े ही उदारतापूर्वक सबक प्राप्त करने की घोषणा की। प्रचंड लू के कारण सिर्फ चार-पांच दर्जन मतदानकर्मियों की मौत और दस बीस दर्जन मतदानकर्मियों के बीमार पड़ने से ही चुनाव आयोग को इस ज्ञान की प्राप्ति हुई है कि चुनाव प्रक्रिया गर्मी के मौसम के एक महीने पहले ही पूरी करा लेनी चाहिए। इससे बड़ी उदारता क्या हो सकती है भला? इतने कम मूल्य पर इतनी बड़ी ज्ञान की प्राप्ति के लिए चुनाव आयोग बधाई का पात्र तो है ही।
इसके अलावा उन मतदानकर्मियों को भी ज्ञान की प्राप्ति हुई है जिन्हें निर्वाचन कर्तव्य में बेमन से भाग लेना पड़ा है। उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई है कि येन-केन-प्रकारेण चुनाव ड्यूटी से अपना नाम कटाना है। वैसे जब वे अपने वृद्ध माता-पिता के स्वास्थ्य का हवाला देते हैं तो उनसे बताया जाता है कि श्रवण कुमार तो एक ही हुए हैं अभी तक। इसलिए इस आधार पर उन्हें चुनाव ड्यूटी से छुटकारा नहीं दिया जा सकता। कोई अपने स्वास्थ्य का हवाला देता है तो कहा जाता है कि आज के जमाने में सभी का स्वास्थ्य खराब होता है। जब मुख्यमंत्री जैसे पद पर विराजित व्यक्ति स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी दिन-रात चुनाव प्रचार कर सकता है तो खराब स्वास्थ्य वाला व्यक्ति चुनाव ड्यूटी क्यों नहीं कर सकता? यदि कोई अपने अधिक उम्र होने का हवाला देता है तो उसे बताया जाता है कि अधिक उम्र अधिक अनुभव का प्रतीक होता है। ऐसे में अधिक उम्र वाले ज्यादा उपयुक्त हैं चुनाव ड्यूटी के लिए।
जब सभी तर्क निष्फल हो जाते हैं तो एक ही तर्क रह जाता है कि संबंधित अधिकारी के पास किसी व्यक्ति की प्रत्यक्ष या परोक्ष कितनी पहुंच है। यदि पहुंच है तो फिर किसी बहाने की आवश्यकता नहीं है और यदि पहुंच नहीं है तो हर बहाने को न है।
तो इस प्रकार इस चुनाव का परिणाम जो भी हो, चुनाव आयोग और चुनावकर्मी दोनों को ज्ञान की प्राप्ति हुई है। देखने की बात है कि आगामी चुनाव में ये दोनों अपने इस ज्ञान का कितना सदुपयोग कराते हैं।