चंडीगढ़, 4 जून (ट्रिन्यू)
हरियाणा व पंजाब के अलावा हरियाणा से सटे राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का भी असर देखने को मिला है। इन चारों ही इलाकों में किसानों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ी है। किसानों की नाराजगी के साथ विपक्षी दल – कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर चलाई संविधान बचाने की मुहिम का भी प्रभाव देखने को मिला। आरक्षण और संविधान के इस मुद्दे पर दलित वोट बैंक भाजपा से दूर हुआ और इसका फायदा विपक्ष को मिला।
हरियाणा में पंजाब से सटी सिरसा, अंबाला व कुरुक्षेत्र संसदीय सीट के अलावा हिसार, भिवानी-महेंद्रगढ़, रोहतक व सोनीपत सीट पर किसानों की नाराज़गी सिर चढ़कर बोल रही थी। बेशक, करनाल में भी इसका असर था लेकिन यहां भाजपा अच्छे मार्जन के साथ चुनाव जीतने में कामयाब रही। करनाल में भाजपा प्रत्याशी मनोहर लाल को दो लाख से भी अधिक मतों के अंतर से जीत मिलने के पीछे एक बड़ा कारण – कांग्रेस प्रत्याशी का ‘लाइटवेट’ होना भी रहा।
सवा नौ वर्षों से भी अधिक समय तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल ‘हेवीवेट’ उम्मीदवार रहे। दूसरा करनाल सिटी के अलावा पानीपत शहर सीट पर भी मनोहर लाल को काफी अधिक वोट हासिल हुए। बाकी विधानसभा क्षेत्रों में भी मनोहर लाल ने अच्छे मत हासिल किए।
कांग्रेस ने जब अपने प्रत्याशियों की घोषणा की तो उस समय भी यह कहा गया था कि करनाल में मनोहर लाल के मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी काफी कमजोर है। कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से भाजपा के नवीन जिंदल चुनाव तो जीत गए लेकिन आम आदमी पार्टी के डॉ़ सुशील गुप्ता ने उन्हें कड़ी टक्कर दी।
किसानों से किए वादे पूरे न कर पाना भी पड़ा भारी
बेशक, एक साल से भी अधिक समय तक दिल्ली बार्डर पर चले किसान आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया। लेकिन किसान संगठनों के साथ किए गए वादों को पूरा नहीं किया जा सका। किसान आखिर तक मांगों को पूरा करने के लिए लड़ते रहे लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के कानून के मुद्दे पर किसान सबसे अधिक नाराज थे। भाजपा समय रहते किसानों की इस नाराज़गी को दूर नहीं कर पाई।