रामकुमार तुसीर
सफ़ीदों, 6 जून
कभी ताऊ देवीलाल और फिर ओमप्रकाश चौटाला का गढ़ रहे सफ़ीदों हलके के पिल्लूखेड़ा क्षेत्र में हालात, तीन-तीन राजनीतिक दलों में परिवार के लोगों के बंट जाने से बदले-बदले हैं। राजनीतिक विरोधियों को घेरकर ताऊ व उनके वारिसों के लिए सत्ता की राजनीति की राह आसान बनाने को ताऊ का भरोसेमंद किला ढह सा गया है। अब यहां कांग्रेस का बोलबाला है। यह किसी पुश्तैनी कांग्रेसी या फिर रातों-रात ‘बाहर’ से कांग्रेस में आए किसी व्यक्ति का चमत्कार नहीं बल्कि कारण यह है कि ताऊ के वारिस एक मंच पर नहीं हैं। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में सोनीपत सीट से ताऊ देवीलाल को 33.2 प्रतिशत के भारी अंतर से जिताने और वर्ष 1984 के चुनाव में भी उनके लिए कड़ी मेहनत करने वालों में सबसे आगे सफ़ीदों के जाट बाहुल्य पिल्लूखेड़ा के लोग थे। भले ही वर्ष 1984 में देवीलाल मात्र 2941 (0.06 प्रतिशत) मतों से कांग्रेस के धर्मपाल मलिक से हार गए थे। ओमप्रकाश चौटाला व इस क्षेत्र के लोगों का परस्पर अच्छा लगाव रहा। प्यार इतना था कि वर्ष 1977 में जब चौटाला ने सफ़ीदों से मेहम के रामचन्द्र जांगड़ा को विधानसभा चुनाव की टिकट दी तो यहां लोग नाराज हुए जिन्होंने देवीलाल के कट्टर समर्थक सरदूल सिंह को आजाद जिता दिया। चौटाला ने गलती महसूस की और सरदूल सिंह को पूरा समय अपना कर रखा। अब हालत यह है कि इस लोकसभा चुनाव में सफ़ीदों विधानसभा क्षेत्र में इनेलो का वोट बैंक 1.18 प्रतिशत तथा जेजेपी का 0.92 प्रतिशत तक सिमट गया है।