चेतनादित्य आलोक
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी के कमंडल से देवी गंगा को राजा भगीरथ के अथक एवं अपरिमेय प्रयासों से जिस दिन पृथ्वी पर लाया गया, उस दिन को धरती पर मां गंगा के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि पृथ्वी पर अवतार लेने से पूर्व मां गंगा नदी के रूप में स्वर्ग में निवास करती थीं। मां गंगा के इस अवतरण दिवस को ही हिंदू संस्कृति में ‘गंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाता है। यह हिंदुओं के लिए एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण पर्व है, जो गंगा नदी की पूजा के लिए समर्पित है।
मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की घटना का सनातन धर्म तथा भारतीय संस्कृति में कितना महत्व है, इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मां गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ द्वारा किये गये प्रयासों को स्वयं राजा भगीरथ के नाम से ही उपमित करते हुए एक प्रेरक मुहावरा ‘भगीरथ प्रयास’ सदियों से भारत भर में ‘लोक जीवन’ का महत्वपूर्ण अंग बना हुआ है। इतना ही नहीं, गंगा जल के बिना हिंदू संस्कृति में कोई भी मांगलिक कार्य पूरा ही नहीं होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गंगा दशहरा के दिन जो भी भक्त पृथ्वी पर अवतार ग्रहण करने के लिए कृतज्ञतापूर्वक एवं शुद्ध मन से पतित पावनी मां गंगा को धन्यवाद देते हुए गंगा नदी में डुबकी लगाने अर्थात् स्नान करने के उपरांत दान आदि करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 16 जून की रात्रि दो बजकर 32 मिनट से लेकर 17 जून की सुबह चार बजकर 45 मिनट तक रहेगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष गंगा दशहरा का पर्व 16 जून को मनाया जायेगा। गौरतलब है कि ‘गंगा दशहरा’ नाम में ‘दशहरा’ शब्द का तात्पर्य मनुष्य के दस विकारों के नाश से है। शास्त्रों के अनुसार गंगा अवतरण के इस पावन दिवस पर गंगा जी में स्नान कर शुद्ध मन से भक्तिपूर्वक उपासना करने वाले भक्तों को मां गंगा दस प्रकार के पापों से छुटकारा दिलाकर उपकृत करती हैं। मनुष्य के जीवन के उन दस प्रकार के पापों में 3 प्रकार के दैहिक कर्मों जनित पाप माने गये हैं, जबकि 4 प्रकार के पाप वाणी द्वारा किये जाने वाले एवं 3 अन्य प्रकार के पापों को मानसिक यानी विचार जनित माना गया है।
बता दें कि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को वाराणसी (काशी), प्रयागराज, गढ़मुक्तेश्वर, हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा दशहरा के उपलक्ष्य में मेले भी लगते हैं, जिसका आनंद लेने देश भर के विभिन्न भागों से भक्त गण उपर्युक्त स्थानों पर पहुंचते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि वाराणसी में गंगा दशहरा के उत्सव का आयोजन पौराणिक काल से ही होता आ रहा है, जिसमें आज भी हजारों-लाखों की संख्या में भक्तगण भाग लेने आते हैं।
गंगा दशहरा के दिन वाराणसी स्थित दशाश्वमेध घाट तथा हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी में आयोजित की जाने वाली मां गंगा की आरती जगत प्रसिद्ध है। वैसे कई लोग इस अवसर पर यमुना नदी के निकट स्थित पौराणिक शहरों मथुरा, वृंदावन और बेटेश्वर में भी भक्त गंगा मैया का ही रूप मानकर यमुना नदी में डुबकी लगाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भक्त गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में डुबकी लगाने के बाद मां गंगा की विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है।