यदि छोटा बच्चा किसी काल्पनिक दोस्त से बतियाते, खेलते या उसे खाना खिलाते दिखता है तो अभिभावक इसे असामान्य मान कर चिंतित हाे जाते हैं। लेकिन बाल मनोविज्ञानी मानते हैं कि एक हद तक यह सामान्य व्यवहार है व बच्चे के विकास में मददगार है।
शिखर चंद जैन
मीना इन दिनों किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त रहने लगी है। इसकी वजह उसकी ढाई वर्षीय बेटी कृतिका का अजीबोगरीब व्यवहार है। कृतिका को वह कुछ खाने को देती है तो वह आधा हिस्सा अलग से रख कर कहती है कि यह टिंकू का है। इसी प्रकार कभी-कभी वह कोई चीज खुद खा लेती है लेकिन मीना से शिकायत करती है, मम्मा! यह टिंकू को पसंद नहीं। अक्सर कृतिका खिलौनों से खेलते हुए भी दोहरी भूमिका निभाती है। कभी वह टिंकू की तरफ से खेलती है कभी अपनी तरफ से। जबकि उनके घर ,बिल्डिंग, काम्प्लेक्स या रिश्तेदारी में कोई टिंकू नाम का बच्चा है ही नहीं। वहीं कुछ ऐसी ही समस्या है माधवी की। उसका 3 वर्षीय बेटा अंशुल अपने टॉय डॉगी वाल्टर को 24 घंटे गोद में उठाए घूमता है। वह खाता है, तो उसे खिलाता है। नहाता है, तो उसे नहलाता है और दूध पीता है ,तो बोतल उसके मुंह में भी लगाता है। माधवी को अंशुल की गतिविधियों से संदेह होता है कि कहीं उसे कोई मानसिक समस्या तो नहीं? अपने बच्चे के अजीब व्यवहार से मीना और माधुरी जैसी चिंता कई मांओं को होने लगती है। लेकिन बालमनोविज्ञानियों का मानना है कि उनकी चिंताएं निराधार हैं।
विकास प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा
यूके के चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एवं व्हाई डू किड्स टू दैट के लेखक रिचर्ड वुल्फसन कहते हैं ,कई बच्चों के अदृश्य या काल्पनिक दोस्त होते हैं। यह उनके विकास की प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है। कई शोध हुए हैं जिनमें पता चला है कि आठ साल से कम उम्र के करीब 25 फ़ीसदी बच्चों में कभी न कभी काल्पनिक दोस्तों के साथ भावनात्मक लगाव देखा जाता है। ज्यादातर 3 साल के आसपास के बच्चे ऐसा करते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के मनोविज्ञानी ईवान किड कहते हैं कि 3 साल के आसपास की उम्र में बच्चे अपना एक काल्पनिक संसार बना लेते हैं। इसी संसार में उनके कुछ काल्पनिक दोस्त भी होते हैं।
कम्युनिकेशन स्किल होती है इंप्रूव
ईवान किड की मानें तो ऐसा करना बच्चे के बुद्धिमान होने व आगे चलकर तेज दिमाग होने की निशानी भी है। अपने अध्ययन में उन्होंने पाया कि ऐसे बच्चों का का दिमाग क्रिएटिव होता है और कम्युनिकेशन स्किल भी सॉलिड होती हैं। इनमें लैंग्वेज स्किल तो अच्छी तरह विकसित होती ही हैं, दूसरों की मानसिक स्थिति और इमोशंस को समझने की क्षमता भी काफी अच्छी होती है। इसलिए ऐसे बच्चों को लोनली या फिर सनकी समझने की गलती कतई न करें।
बनते हैं सोशल, निभाते हैं संबंध
डॉक्टर कहते हैं जिन बच्चों के काल्पनिक व अदृश्य दोस्त होते हैं उनके आगे चलकर वास्तविक दोस्त भी ज्यादा होते हैं। हां ,एक बात जरूर देखी गई है कि इस तरह के बच्चे अक्सर वे होते हैं जो या तो अपने माता-पिता की पहली संतान हों या फिर सिंगल चाइल्ड। क्योंकि जिन बच्चों को शुरू से ही कंपनी मिल जाती है उन्हें काल्पनिक दोस्त की जरूरत नहीं पड़ती । चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट पर्णिका बंसल कहती हैं, ‘जिन बच्चों के काल्पनिक दोस्त होते हैं उनकी आगे चलकर लोगों से संबंध बनाने और निभाने की प्रवृत्ति देखी जाती है।
व्यवहार सुधारने में मददगार
काल्पनिक दोस्त का एक फायदा यह भी है कि जब भी आपका बच्चा ज्यादा मनमानी या शैतानी करे तो उससे कहें कि तुम्हारा दोस्त तुम्हें बिगाड़ रहा है। लगता है वह आजकल बहुत बदमाश हो गया है। इससे बच्चा संभल जाएगा और अपने दोस्त की इमेज को बचाने के लिए वह फिर गुड बिहेवियर भी करेगा।
ऐसे निपटें समस्या से
बालमनोविज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चा वास्तविक दुनिया से दूर रहने लगा हो और सनक की हद तक अपने काल्पनिक दोस्त के लिए जिद करने लगा हो या रोने लगे तो ऐसी स्थिति में अभिभावक को सचेत हो जाना चाहिए। यह भी कि उसकी जिद को हमेशा पूरी न करें। वहीं उसके काल्पनिक दोस्त के लिए गाड़ी में सीट खाली छोड़ने या एक्स्ट्रा फूड देने के लिए मना करें। यह भी कोशिश करें कि उसे किसी हमउम्र बच्चे की कंपनी मिले। ऐसा संभव न हो तो उसे अक्सर बाजार,पार्क या कोरिडोर में ले जाएं और बाहर की दुनिया से रूबरू करवाएं। वास्तविक दुनिया में आकर वह अपने काल्पनिक दोस्त को जल्दी ही भूलने लगेगा। ये उपाय अपनाने के साथ-साथ किसी बालमनोविज्ञानी को बच्चे को दिखाएं।