सत्यवीर नाहडि़या
भास्सा बरगी भोत पुराणी, जाणै दुनिया सारी।
हरियाणे की बोल्ली धाकड़, जग म्हं गुँज्जै न्यारी।।
कोय हरियाणवी कह दे अर कह कोये हरयाणी।
जितनी बोल्ली सैं दुनिया म्हं, उन म्हं आग्गै पाणी।
गीत-रागणी कथा-कहाणी, छप ल्यी इस म्हं भारी।
हरियाणे की बोल्ली धाकड़, जग म्हं गुँज्जै न्यारी।।
जुगां-जुगां तै इस बोल्ली नै, चोक्खी साख बणाई।
बोल्लीबुड लग इस बोल्ली नै, अपणी धाक जमाई।
हिंदी माई की या माई, न्यूँ नान्नी सै म्हारी।
हरियाणे की बोल्ली धाकड़, जग म्हं गुँज्जै न्यारी।।
कितै बाँगरू कितै बागड़ी, रूप खादरी ध्यावै।
कितै मिवाती कितै कौरवी, कितै बिरज रै छावै।
कितै हीरबाट्टी रै पावै, लटक सभी की प्यारी।
हरियाणे की बोल्ली धाकड़, जग म्हं गुँज्जै न्यारी।।
साँग निराळे इस म्हं गुँज्जे, आज तलक न्यूँ कड़कै।
भास्सा बणकै रह या बोल्ली, आज नहीं तै तड़कै।
कह ‘नाहड़िया’ दिल म्हं धड़कै, माँ-बोल्ली लयकारी।
हरियाणे की बोल्ली धाकड़, जग म्हं गुँज्जै न्यारी।।