सुभाष पौलस्त्य/निस
पिहोवा, 15 जुलाई
जो जीता वो सिकंदर वाली कहावत चरितार्थ करने वाला पिहोवा विधानसभा एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, यहां से जो भी जीता, वही सिकंदर बना यानि सरकार में मंत्री बना। 1967 से लेकर 2019 तक अब तक पिहोवा विधानसभा में 13 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं।
जहां से यदि 1967 को छोड़ दिया जाए तो हर जीतने वाला विधायक यहां से मंत्री बना। वर्ष 1968 व 72 तथा 1982 में प्यारा सिंह यहां से विधायक बने तथा सरकार में मंत्री रहे। 1970 में तारा सिंह यहां से विधायक बने तथा विधानसभा अध्यक्ष व बाद में मंत्री बने। 1982 में फिर प्यारा सिंह यहां से विधायक बने तथा सरकार में मंत्री बने। 1987 में बलवीर सिंह सैनी यहां से विधायक बने तथा वह भी मंत्री बने।
1991 और 1996 वर्ष 2000 के चुनाव में जसविंदर सिंह यहां से विधायक बने तथा वह भी मंत्री बने। वर्ष 2005 व 2009 में हरमोहेंद्र सिंह चट्ठा ने यहां से जीत दर्ज की तथा दोनों ही बार विधानसभा अध्यक्ष और मंत्री रहे। वर्ष 2019 में यहां से संदीप सिंह ने चुनाव लड़ा तथा जीत दर्ज करके सरकार में मंत्री बने। यहां से अब तक हुए 13 विधानसभा चुनाव में, जो विधायक बने वे सभी मंत्री पद पर
रहे। इनमें सबसे अधिक चार बार चुनाव जसविंदर सिंह ने लड़ा व जीत हासिल की।
तीन बार प्यारा सिंह यहां से विधायक बने तथा दो बार हरमोहेंद्र सिंह चट्ठा विधायक बने। केवल एक बार 1967 में चिमनलाल सरार्फ, जो कैथल के थे, वह यहां से विधायक बने, परंतु मंत्री न बने।
उस वक्त कैथल पिहोवा विधानसभा क्षेत्र का ही हिस्सा था। 2014 में जसविंदर सिंह विधायक तो बने, परंतु उनकी पार्टी सत्ता में न आई, जिस कारण वह मंत्री न बन सके। ज्यादातर बाहरी उम्मीदवार ही यहां से विधायक बने। केवल दो विधायक की पिहोवा विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय निवासी थे।
स्थानीय प्रत्याशी का समर्थन, बाहरी का विरोध होगा
लाडवा से आकर प्यारा सिंह ने चुनाव लड़ा तथा करनाल से आकर तारा सिंह ने चुनाव लड़ा व थानेसर से आकर हरमोहिन्द्र सिंह चट्ठा ने चुनाव लड़ा। सभी ने चुनाव में जीत हासिल की। बाहरी के बारे में जब भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा टिकट के प्रबल दावेदार एडवोकेट गुरनाम सिंह सारसा से बात की तो उन्होंने कहा कि अधिकांश पार्टियों ने स्थानीय नेताओं को टिकट ही नहीं दिया, परंतु इस बार जो जीता वह सिकंदर नहीं होगा। इस बार जो जीता वह चंद्रगुप्त होगा। इस बार यहां से स्थानीय व्यक्ति को ही चुनाव में टिकट दिया जाएगा तथा स्थानीय का मुद्दा बड़े जोर-शोर से हलके में चल रहा है। स्थानीय प्रत्याशी ही इस बार जीत हासिल करेगा और बाहरी का विरोध होगा।