वनों का विस्तार
धरती पर जनसंख्या के लगातार बढ़ते बोझ और विकास के विद्रूप से आज वनों की संख्या में निरंतर गिरावट आई है। मानवीय स्वार्थ और लालच के कारण धरती का संपूर्ण पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र लगातार ख़राब हो रहा है। हमें अपने पारिस्थितिकीय तंत्र की जहां पुनर्स्थापना करनी होगी वहीं पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, पर्यावरण विकास के साथ ही जैव विविधता को बनाये रखने की दिशा में भी काम करना होगा। हमें चरागाहों, घास के मैदानों का संरक्षण करना होगा और साथ ही जीव-जंतुओं के रहवास के निमित्त अधिकाधिक पेड़-पौधे लगाने होंगे।
सुनील कुमार महला, पटियाला, पंजाब
सह-अस्तित्व जरूरी
पर्यावरण व अर्थव्यवस्था में सह-अस्तित्व जरूरी है। लेकिन हाल ही में वन्य जीवों के जंगलों से निकल कर आश्रय और भोजन की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश करने की घटनाएं बढ़ी हैं। वास्तव में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण वन्य जीवों के लिये खाने-पानी की कमी हो गई है। विकास के नाम पर जंगलों में रिजॉर्ट्स की स्थापना, सड़कों का निर्माण और शाकाहारी जीव-जंतुओं के शिकार के कारण भी वन्य जीवों के आश्रय और भोजन लुप्त होते जा रहे हैं। इनके अनुकूल स्थितियां बनाने के लिए वनों का मानक क्षेत्र कुल भूमि का 33 प्रतिशत तक बढ़ाने की आवश्यकता है। जरूरी है कि वन्य जीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाये। वहीं प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत 53 राष्ट्रीय पार्कों का ईमानदारी से रखरखाव करने की आवश्यकता है।
शेर सिंह, हिसार
पर्यावरण संतुलन
जंगल से जीव-जंतुओं का यदा-कदा बस्तियों की ओर रुख करने के प्रमुख कारण वनों का विकास कार्यों हेतु अंधाधुंध कटान और वनों में खाने-पीने की कमी है। वहीं बहुत सारी वन्य जीव प्रजातियां भी लुप्त हो गई हैं। अगर हम चाहते हैं कि अन्य वन्य प्रजातियों के साथ-साथ बाघों की संख्या में भी वृद्धि होती रहे तो सभी वन्य जीवों के अनुकूल परिस्थितियां बनानी होंगी तथा वनों के अंधाधुंध कटान पर प्रतिबंध लगाना होगा। वनों में बाघों के लिए जो क्षेत्र आरक्षित हैं वहां उनके रहने के लिए और ज्यादा व बेहतर आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हों। वन्य जीवों का बस्तियों में प्रवेश रोकने को पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखना बहुत जरूरी है।
शामलाल कौशल, रोहतक
प्रकृति संरक्षण उपाय
इंसान ने भौतिकवाद की अंधी दौड़ के चलते जीव-जंतुओं का जीना भी दुश्वार कर दिया है। यहां तक कि बहुत से जंगली-जीव जंतुओं की प्रजातियां लुप्त होने की कगार तक पहुंच चुकी हैं। हरे-भरे जंगल नष्ट हो रहे हैं तो ऐसे में कई जंगली जानवरों के रिहायशी इलाकों में आ जाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जिस देश में प्रकृति के अंगों- वृक्षों, नदियों तक की पूजा की जाती हो, पशु-पक्षियों की सेवा को पुण्य माना जाता हो, वहां इन सबके विरुद्ध कारगुजारी हैरानी की बात है। अगर हमें भविष्य में कोरोना जैसी महामारियों से बचना है और लंबा जीवन जीना है तो प्रकृति के सभी चेतन-अचेतन घटकों, चाहे वह धरा हो, जल हो, वन हों, जीव-जंतु हों -सबका संरक्षण करना होगा।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
जीव रक्षा की संस्कृति
भारत में वन्य-प्राणियों के लिए अनुकूल स्थितियां पैदा करने के लिए राष्ट्रीय उद्यानों में संरक्षण, संवर्धन एवं सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं। क्योंकि हमारा देश पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बीच संघर्ष में विश्वास नहीं करता। इन दोनों में सह-अस्तित्व को समान महत्व देता है। इसलिए वन्य-जीवों के संवर्धन हेतु अनुकूल परिस्थितियों में उनका फलना-फूलना अहम है। प्रकृति की रक्षा करना हमारे देश की संस्कृति का हिस्सा है। जिससे वन्य-जीवों को संरक्षण एवं सुरक्षा मिलने से खाना-पानी की समस्या नहीं रहेगी और न ही अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों का उन पर प्रभाव पड़ सकेगा।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
संरक्षित क्षेत्र बनायें
नैसर्गिक न्याय की अवधारणा है कि प्रत्येक प्राणी का जल, जंगल और जमीन पर जन्मजात बराबर का अधिकार है। लेकिन मानव के बढ़ते अतिशय हस्तक्षेप की प्रवृत्ति के कारण जैव विविधताओं का संसार सिमटता जा रहा है। वहीं कई जीवों के रिहायशी क्षेत्रों में घुसने के पीछे वनों की अंधाधुंध कटाई, औद्योगीकरण आदि हैं। इन सबके मूल में कारण बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि है। सर्वविदित है कि प्रत्येक प्राणी को अपने मूल निवास पर भोजन की सहज अनुपलब्धता के कारण ही विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसलिए शिकार करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाये। वन्य जीवों के मूल निवास क्षेत्र संरक्षित करके उनके प्रजनन केंद्र बनाये जायें।
राजेंद्र सिंह कोहली, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
कटान पर रोक
हाल ही के वर्षों में प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत बाघों की संख्या में वृद्धि होना सराहनीय है। इसके साथ-साथ चिंता का विषय भी है कि जंगली जीव जंगलों से निकल कर बस्तियों में देखे गए हैं। नि:संदेह विकास की तेज गति ने जंगलों के अस्तित्व को प्रभावित किया है। वन्य जीवों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने के लिए जरूरी है कि जंगलों की कटाई पर रोक लगे तथा अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाकर वायु को दूषित होने से बचाया जाए। पर्यावरण शुद्ध होने से ही वन्य जीव सुरक्षित रह सकते हैं तथा इनके लिए अनुकूल स्थितियां बन सकती हैं।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल