चेतनादित्य आलोक
सावन के महीने से भगवान शिव का प्रामाणिक संबंध है। वैसे तो भक्त बारहों महीने भगवान भोलेनाथ की भक्ति और पूजा-आराधना करते रहते हैं, किन्तु देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास व्रत आरंभ होने के कारण इस दिन से साधु-संत और तपस्वीगण एक ही स्थान पर रहते हुए स्वाध्याय, तप, साधना एवं प्रवचन इत्यादि करते हैं। दरअसल, चातुर्मास काल में भगवान श्रीविष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं, जिसके कारण इस काल में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य यथा विवाहादि आयोजित नहीं किये जाते, किन्तु सृष्टि का संचालन यथावत चलता रहे इसलिए सृष्टि-संचालन का कार्यभार भगवान भोलेनाथ अपने हाथों में ले लेते हैं। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के दिन से अगले चार महीनों तक भगवान भोलेनाथ ही सृष्टि का संचालन करते हैं। इसी चातुर्मास काल में एक महीना सावन का भी होता है, जो कि भगवान शिव की भक्ति और महिमा के लिए विख्यात है।
सावन हिंदू पंचांग का पांचवां महीना होता है। ज्येष्ठ-आषाढ़ की तपाती गर्मी, उमस और चिलचिलाती धूप से परेशान संपूर्ण प्राणी जगत को सावन महीने की प्रतीक्षा रहती है, क्योंकि इस महीने में होने वाली रिमझिम वर्षा के कारण तापमान में गिरावट आती है और प्रकृति में सुखद परिवर्तन होते हैं। इसके परिणामस्वरूप संपूर्ण सृष्टि में तृप्ति और तुष्टि का प्रसार होता है तथा प्राणियों के जीवन में उमंग, उल्लास और प्रसन्नता का संचार होने लगता है। तात्पर्य यह कि सावन हरियाली, सुंदरता, सकारात्मकता, शुभता और पवित्रता का महीना होता है, जो प्रायः प्रत्येक प्राणी के लिए तृप्ति, तुष्टि, उमंग, उल्लास, प्रसन्नता, नवोन्मेष एवं नवजीवन का उपहार लेकर आता है। वैसे धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह महीना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस महीने में हिंदुओं के कई प्रमुख तीज-त्योहारों की शुरुआत होती है, जिनमें हरियाली तीज, रक्षा-बन्धन एवं नाग-पंचमी प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। साथ ही भगवान शिवजी को अत्यंत प्रिय होने के कारण इस महीने में उनकी विशेष पूजा-आराधना करने का विधान भी शास्त्रों में वर्णित है।
सावन के महीने का भगवान शिव से संबंध होने के कई आध्यात्मिक एवं पौराणिक आधार हैं। इनमें एक प्रमुख आधार यह पौराणिक मान्यता भी है कि इसी महीने में भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे, जहां उनका स्वागत अर्घ्य एवं जलाभिषेक से किया गया था। तबसे लेकर आज तक शिवभक्तों के बीच यह मान्यता चली आ रही है कि भगवान शिव प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में भूलोक पर अवतरित होकर अपने ससुराल आते हैं। वस्तुतः भू-लोक वासियों के लिए शिव-कृपा प्राप्त करने का यह उत्तम समय होता है।
इसी प्रकार शिव और सावन के बीच के विशेष संबंधों का दूसरा प्रमुख आधार पौराणिक कथाओं में वर्णित कल्याणकारी एवं समुद्र मंथन का प्रसंग भी है। मान्यता है कि हिन्दू संस्कृति में विशेष रूप से महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय समुद्र मंथन का कार्य सावन के महीने में ही संपन्न हुआ था। समुद्र मंथन से निकले विष की भयावहता को देखते हुए महाकल्याणी महादेव ने संपूर्ण विश्व को किसी भी प्रकार के अनिष्ट से बचाने हेतु उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। विषपान करने के बाद महादेव का कंठ नीलवर्णी हो गया, जिसके कारण ही वे ‘नीलकंठ’ कहलाये।
विषपान से उत्पन्न ताप को दूर करने तथा भगवान भोलेनाथ को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इंद्र ने तो तब घनघोर वर्षा की ही, सभी देवी-देवताओं ने भी उन्हें जल अर्पित किया, जिससे भगवान शिव का ताप कम हुआ और उन्हें शांति मिली। मान्यता है कि तबसे ही महादेव का अभिषेक करने की परंपरा प्रारंभ हुई। इसी प्रकार शिव और सावन के बीच के विशेष संबंधों का तीसरा प्रमुख आधार देवी सती की कथा है। कथानुसार उन्होंने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग करने के बाद अपने दूसरे जन्म में पार्वती के नाम से हिमालय के घर में जन्म लिया। पार्वती ने बचपन से ही सावन के महीने में निराहार रहते हुए भगवान भोलेनाथ को जलार्पण कर कठोर व्रत किया। ताकि उन्हें पति के रूप में पुनः शिव प्राप्त हों। पार्वती जी की कठोर साधना से प्रसन्न हुए भगवान शिव ने उन्हें सावन के महीने में ही अर्द्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था। यही कारण है कि आज भी भक्तगण मनचाहा जीवनसाथी पाने की इच्छा से सावन में भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना करते हैं।
कहते हैं कि विशेषतः इन दोनों कारणों से ही सावन के महीने में भगवान शिव को जलार्पण करने का विशेष महत्व होता है। भगवान भोलेनाथ को जलार्पण करने तथा उनकी भक्ति एवं आराधना करने से भक्तों को भुक्ति, मुक्ति, भक्ति एवं शक्ति इत्यादि की प्राप्ति के पौराणिक प्रमाण उपलब्ध हैं। इसीलिए सावन के महीने में प्रायः देश भर के ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के शिवभक्त भगवान भोलेनाथ को जलार्पण कर उनसे सौभाग्य एवं अन्य इच्छित वरदान प्राप्त कर संतुष्ट होते हैं। विश्व भर के शिवालयों में भक्तों की उमड़ती भीड़ तथा ‘हर-हर महादेव’ एवं ‘बोल बम’ के घोष से गूंजित वातावरण से शिवमय हुआ सारा संसार मानो अपने जीवन के विभिन्न तापों एवं संतापों को मिटाने की उत्कट अभिलाषा लिए शिवालयों की ओर दौड़ पड़ता है। यह भगवान शिव के प्रति भक्तों की आस्था एवं भक्ति का द्योतक है।