सत्य प्रकाश/ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 23 जुलाई
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा देश में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई का आश्वासन देने के कुछ दिनों बाद, भाजपा नीत राजग शासित 9 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर ने इस मुद्दे पर सुनवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, असम, राजस्थान, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर ने मामले में अलग-अलग हस्तक्षेप आवेदन दायर किए हैं।
आईपीसी की धारा 375 में बलात्कार को महिला की सहमति के बिना और उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध के रूप में परिभाषित किया गया है। लेकिन धारा 375 का अपवाद 2 कहता है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी, जिसकी उम्र 15 वर्ष या उससे अधिक है, के साथ यौन संबंध बलात्कार नहीं है, भले ही यह उसकी सहमति के बिना और उसकी इच्छा के विरुद्ध हो। शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी, 2023 को धारा 375 के अपवाद 2 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था।
चूंकि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), जिसने 1 जुलाई को आईपीसी की जगह ली, वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने में विफल रही, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका ने उस प्रावधान की वैधता को चुनौती दी है जो वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार के अपवाद के रूप में मानता है।
अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (एआईडीडब्ल्यूए) द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिका पर कार्रवाई करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने 17 मई को केंद्र से विवादास्पद मुद्दे पर अपना रुख बताने को कहा था।
एआईडीडब्ल्यूए ने तर्क दिया कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ है क्योंकि यह एक विवाहित महिला की शारीरिक अखंडता, निर्णयात्मक स्वायत्तता और गरिमा के अधिकारों को छीन लेता है।