एक बार महर्षि वेदव्यास से उनके शिष्य जिज्ञासावश प्रश्न कर बैठे । प्रश्न था—देव और दानव का मुख्य अंतर क्या है? महर्षि वेदव्यास ने कहा कि हमारा यह पूरा जीवन ही मूलतः देने की प्रवृत्ति का एक उदार उत्सव है। यह सच है, दूसरों को देना ही पाना है। ज्ञान हो या अज्ञान, खुशी हो या गम, ये सभी चीजें जितना बांटो, उतना बढ़ती हैं। इसलिए सुख, शांति, सद्ज्ञान, सद्बुद्धि, सद्गुण व सकारात्मक शक्ति देने वालों को देवी-देवता कहते हैं। दुख, अशांति, अज्ञान, अवगुण व नकारात्मक शक्ति फैलाने वाले दानव हैं।
प्रस्तुति : पूनम पांडे