द्वाराहाट को दूसरे शब्दों में लोग ‘मंदिर वाला गांव’ कहते हैं। द्वाराहाट से ही करीब 15 किलोमीटर दूर ऊंचाई पर शक्तिपीठ मां दूनागिरी का मंदिर स्थित है। यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर में से एक है।
बृज मोहन तिवारी
द्वाराहाट उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले में स्थित है। यह रानीखेत से लगभग 32 किलोमीटर और अल्मोड़ा से 74 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह कभी कत्यूरी और चंद शासकों के अधीन था। द्वाराहाट का नाम श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका के नाम पर रखा गया है। प्राचीन काल में द्वाराहाट को उत्तर द्वारिका के नाम से जाना जाता था। द्वाराहाट में ‘हाट’ प्राचीन बाजार को स्पष्ट करता है।
कुमाऊं की प्रचलित लोककथा के अनुसार सम्पूर्ण उत्तराखंड क्षेत्र के केंद्र में स्थित होने के कारण द्वाराहाट को देवताओं ने इस क्षेत्र की राजधानी के रूप में चुना था। जो सुंदरता और भव्यता में दक्षिण में स्थित श्रीकृष्ण की द्वारिका के समानांतर हो। द्वाराहाट नाम का अर्थ ‘स्वर्ग का रास्ता’ होता है। यह गांव देखने में ही बहुत खूबसूरत है। दूर-दूर से लोग इस गांव में घूमने जाते हैं।
मंदिरों वाला गांव
इस गांव की खासियत है कि यहां मौजूद देवी-देवताओं के मंदिर हैं। कहा जाता है कि इस गांव में देवी-देवताओं का निवास है। द्वाराहाट को दूसरे शब्दों में लोग ‘मंदिर वाला गांव’ कहते हैं। द्वाराहाट से ही करीब 15 किलोमीटर दूर ऊंचाई पर शक्तिपीठ मां दूनागिरी का मंदिर स्थित है। यह उत्तराखंड के मां दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर में से एक है। मंदिर पर चढ़ा हुआ नारियल परिसर में तोड़ा नहीं जाता है। द्वाराहाट में लगभग 55 प्राचीन मंदिर हैं और हर मंदिर की अपनी खास पहचान है।
यहां के मंदिर तीन वर्ग में कचहरी, मनिया और रतनदेव से प्रसिद्ध हैं। कचहरी मंदिर समूह में 12 मंदिर हैं तो मनिया में दो मंदिर हैं। वहीं रतनदेव में नौ मंदिर हैं। इसके अलावा यहां बद्रीनाथ मंदिर भी है जो बद्रीनाथ धाम को समर्पित है। महामृत्युंजय मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां गुर्जर देवाल मंदिर खास है। इस मंदिर की कलाशैली को देखते हुए इसे कुमाऊं का खजुराहो मंदिर भी कहा जाता है।
दूनागिरी मंदिर
दूनागिरी शक्तिपीठ मंदिर द्वाराहाट से लगभग 14 किलोमीटर दूरी पर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है।
संतसंग योगदा शाखा आश्रम
द्वाराहाट के प्रमुख स्थल में संतसंग योगदा शाखा आश्रम है। इस आश्रम का उद्घाटन सन् 1983 में किया गया था। आश्रम देश में गुरुदेव श्री-श्री परमहंस योगानंद के आध्यात्मिक विचारों का प्रचार-प्रसार करता है।
खान-पान
अगर आप स्थानीय खानपान का आनंद लेना चाहते हैं तो उनमें कापा, डुबुक, बड़ी भात, छटवांणी, रसभात, चुड़कानी, झोली, मंडवे की रोटी, झुमरे की खीर और जौला विशेष हैं। इनका अपना एक अलग स्वाद और पोषण से भरपूर हैं।
पहनावा
काफी समय पहले स्त्रियों में घाघरा-चोली पहनने का रिवाज प्रचलित था लेकिन बदलते समय के साथ-साथ अब साड़ी पहनना आरंभ कर दिया है। स्त्रियों के साज-शृंगार में मंगलसूत्र, पायल, बिच्छिया, कांच की चूड़ियां, कान के झुमके प्रमुख हैं। प्रत्येक मांगलिक कार्यों में ‘पिछौड़ा’ (एक प्रकार की चुन्नी) का अपना एक विशेष महत्व है। वहीं शुभ अवसर पर पुरुष भी मर्दानी धोती पहनते हैं।
त्योहार
यहां प्रमुख त्योहारों में वसंत पंचमी, घी संक्रांति, भिटौली और हरेला, फूलदेई, खतड़वा, चैतोल, कलाई, संक्रांति, होली, तीज, दिवाली का अपना विशेष महत्व है। हाेली के बाद यहां तीन दिन तक चलने वाला ‘सालरी का मेला’ शीतला पुष्कर मैदान में आयोजित होता है। यह मेला युद्ध में वीरता का प्रतिनिधित्व करता है।
पर्यटन के लिहाज से
अगर आप प्रकृति से रूबरू होना चाहते हैं तो यहां प्रकृति का पूरा आनंद ले सकते हैं। यानी यहां चारों ओर केवल हरियाली ही हरियाली नजर आयेगी। मंदिर से लेकर आश्रम तक यह शहर आपको सुकून भरी जिंदगी जीने का अवसर देगा। यहां की हवा और प्राकृतिक स्रोतों का पानी बेहद ही स्वच्छ है।
ट्रेन-सड़क से
द्वाराहाट से निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो लगभग 108 किमी दूर है। द्वाराहाट के लिए स्टेशन के बाहर से कैब या निजी/सार्वजनिक बस ले सकते हैं। सफर करने में लगभग 4 घंटे लगेंगे। वहीं द्वाराहाट के रास्ते में मनमोहक दृश्यों का आनंद लिया जा सकता है। द्वाराहाट कोसानी-रानीखेत और अल्मोड़ा-बद्रीनाथ मार्गों के चौराहे पर स्थित है। द्वाराहाट घूमने का सबसे अच्छा समय फरवरी-अप्रैल और सितंबर-अक्तूबर के बीच है।