नयी दिल्ली, 27 जुलाई (एजेंसी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शनिवार को यहां आयोजित नीति आयोग की बैठक में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार समेत 10 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री शामिल नहीं हुए। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बैठक बीच में छोड़कर बाहर निकल आईं। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष की एकमात्र प्रतिनिधि होने के बावजूद उन्हें भाषण के दौरान बीच में ही रोक दिया गया। ममता ने कहा कि पांच मिनट के बाद उनका माइक्रोफोन बंद कर दिया गया, जबकि अन्य मुख्यमंत्रियों को अधिक देर तक बोलने की अनुमति दी गई। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा, ‘यह अपमानजनक है। मैं आगे से किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लूंगी।’ हालांकि, सरकार ने उनके आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ममता बनर्जी को बोलने के लिए दिया गया समय समाप्त हो गया था। तृणमूल के कई नेताओं ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधा, वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल अन्य दलों ने भी ममता बनर्जी का समर्थन किया।
ममता ने बैठक से बाहर आने के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘मैं बैठक का बहिष्कार करके बाहर आई हूं। चंद्रबाबू नायडू (आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री) को बोलने के लिए 20 मिनट दिए गए। असम, गोवा, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने 10 से 12 मिनट तक अपनी बात रखी। मुझे पांच मिनट बाद ही बोलने से रोक दिया गया। यह अनुचित है।’ ममता के अनुसार, उन्होंने बैठक के दौरान कहा कि सरकार ने राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण बजट पेश किया है और सवाल किया कि केंद्र राज्यों के बीच भेदभाव क्यों कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘नीति आयोग के पास कोई वित्तीय शक्तियां नहीं हैं, तो यह कैसे काम करेगा? इसे वित्तीय शक्तियां दें या योजना आयोग को वापस लाएं।’
नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बीवीआर सुब्रमण्यम ने बैठक से बाहर गईं ममता बनर्जी के बारे में कहा कि उन्होंने दोपहर के भोजन से पहले बोलने का अनुरोध किया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया, हालांकि राज्यों के नाम के हिसाब से उनकी बारी बाद में आनी थी। सुब्रमण्यम ने कहा कि जब मुख्यमंत्री का समय समाप्त हुआ, तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बस माइक थपथपाया। इस पर उन्होंने बोलना बंद कर दिया और बाहर चली गईं।
ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य : कांग्रेस
कांग्रेस ने कहा कि नीति आयोग की बैठक में ममता बनर्जी के साथ जो व्यवहार हुआ, वो पूरी तरह अस्वीकार्य है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि नीति आयोग की बैठकें दिखावा मात्र होती हैं और यह संस्था पेशेवर एवं स्वतंत्र नहीं है। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘10 साल पहले स्थापित होने के बाद से, नीति आयोग प्रधानमंत्री का एक अटैच्ड ऑफिस रहा है। यह ‘नॉन-बायोलॉजिकल’ प्रधानमंत्री के लिए ढोल पीटने वाले तंत्र के रूप में काम करता है। नीति अयोग ने किसी भी रूप में सहकारी संघवाद को मज़बूत नहीं किया है।’ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के समर्थन में सामने आए।
भाजपा ने बताया नाटक भाजपा ने ममता बनर्जी के कदम को पूर्व नियोजित बताते हुए कहा कि उनका इरादा सुर्खियां बटोरने का था। भाजपा महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने कहा, ‘हमारे देश में सुर्खियां बटोरना बहुत आसान है। पहले, यह बताया कि मैं (ममता) नीति आयोग की बैठक में भाग लेने वाली एकमात्र विपक्षी मुख्यमंत्री हूं। फिर बाहर आईं और बताया कि माइक बंद होने के कारण बैठक का बहिष्कार किया।’ भाजपा के राज्यसभा सदस्य समिक भट्टाचार्य ने कहा कि ममता राजनीतिक लाभ लेने और बाहर निकलकर नाटक करने गई थीं।