मोहन राजेश
‘सर एक्सईएन और चीफ इंजीनियर दोनों ने रिपोर्ट दी है कि बांध के कम से कम दो चैनल गेट खोलना जरूरी हो गया है, वरना बांध टूट सकता है।’ सिंचाई विभाग के ज्वाइंट सेक्रेटरी ने हड़बड़ाते हुए कहा।
‘तो खोल दो, दो गेट। इसमें का परोबलम है।’ सिंचाई मंत्री रामखेलावन जी ने सहज भाव से स्वीकृति प्रदान करते हुए पूछा।
‘सर उसके लिए कुछ प्रशासनिक तैयारियां जरूरी हैं। आसपास के कुछ गांव खाली करवाने होंगे, अनाउंसमेंट के साथ विस्थापित परिवारों के अस्थाई आवास की व्यवस्था करनी होगी।’ संयुक्त सचिव ने स्थिति स्पष्ट की।
‘इसका मतलब कुछ गांव डूब जाएंगे, फसलें भी खराब हो जाएंगी?’ मंत्री जी ने उद्विग्न स्वर में पूछा- ‘ये गांव हमारे निर्वाचन क्षेत्र में ही आते हैं न?’
‘जी हां, पर सरकार उनके नुकसान का मुआवजा देगी।’ ज्वाइंट सेक्रेट्री ने कहा।
‘भाई तुम तो जानते हो हम तो अभी नए-नए मंत्री बने हैं, इसलिए सीएम साहब से बात करके फिर कोई निर्णय लेंगे।’ कहते हुए मंत्री जी ने ज्वाइंट सेक्रेटरी को हाथ का इशारा दे चलता किया। फिर अपने पीए की और मुखातिब होकर बोले, ‘तुम्हारी क्या राय है राधेश्याम?’
मंत्री जी इसमें तो अपना कोई खास फायदा ही ही नहीं क्योंकि आजकल राहत राशि सीधे लोगों के बैंक एकाउंट में जाती है। अपने हाथ कोई खास रोकड़ा तो लगना नहीं।’ मंत्री जी के निजी सहायक ने कहा। ‘हां पर बांध टूट गया तो नए बांध के निर्माण का ठेके देने में जो कमीशन राशि मिलेगी, वह भी कम नहीं होगी।’
‘पर तबाही भी कम नहीं होगी सर…’ निजी सहायक के पास बैठे मंत्री जी के सरकारी पी.एस. ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘आसपास के सौ-डेढ़ सौ गांव डूब क्षेत्र में आ जाएंगे, फसलें तो नष्ट होंगी ही, लोगों के कच्चे मकान भी ढह जाएंगे और पशुधन का भी नुकसान होगा।’
‘आपकी यह बीच में बोलने की आदत बहुत खराब है पीएस साहब, माना कि आप सरकारी अफसर हैं पर हर बात में टांग अड़ाने के लिए नहीं। आप बिन मांगे सलाह देना बन्द कर दीजिए।’
‘हां तो राधेश्याम तुम्हारी क्या राय है?’ मंत्री जी पीए की ओर मुखातिब होकर बोले।
मंत्री जी अपने गांव के और विश्वासपात्र राधेश्याम जी को सेकेंडरी स्कूल के हेड मास्टर पद से प्रतिनियुक्ति पर अपने पीए के रूप में लाये थे अतः उन्हें राधेश्याम से अधिक भरोसा किसी पर नहीं था।
मंत्री जी के प्रश्न पर राधेश्याम जी बोले, ‘मेरी राय में तो बांध के टूट जाने में लाभ ही है, केंद्र से राहत कार्यों के लिए मनमाना पैसा मिलेगा। राज्य सरकार भी अपना खजाना खोलेगी। रुपये में से चार आने राहत में बाटेंगे तो वोटों की फसल पकेगी। चार आने ऊपर सीएम साहब को पहुंचा देंगे तो अगली बार सीट पर अपनी दावेदारी पक्की होगी। दो आने इधर-उधर के अफसरों और अख़बार वालों में बंटवा देंगे तो ज्यादा हाय-तौबा भी नहीं होगी। बचे छह आने सीधे अपनी जेब में…’ मंत्री जी को अपनी बुद्धिमता पर मंत्रमुग्ध देख राधेश्याम जी ने रुककर गहरी सांस ली और फिर मूंछों पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘फिर नये बांध के निर्माण में चालीस परसेंट तो पक्का है ही…’ राधेश्याम जी अभी पूरी गणित समझा ही रहे थे कि मंत्री जी मूंडी हिलाकर बोले, ‘बस, बस मैं समझ गया राधेश्याम। वैसे भी रजवाड़े के समय अंग्रेजों द्वारा बनाया हुआ अस्सी-नब्बे साल पुराना यह बांध आगे-पीछे टूटना तो है ही। अपने रहते ही टूट जाने दो।