यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां तिरंगा फहराया जाता है। इस परंपरा की शुरुआत रांची के एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने स्वतंत्रता उपरांत सबसे पहले तिरंगा फहराकर की थी। उस समय से लेकर अब तक हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां देश के लिए शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों की याद और सम्मान में तिरंगा फहराया जाता है।
अलका ‘सोनी’
यूं तो हर मंदिर धर्म और आस्था से जुड़ा रहता है। जहां भक्ति-भाव से भरे भक्त अपने आराध्य की पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं। लेकिन अगर कोई मंदिर ईश प्रेम के साथ-साथ देश-प्रेम से भी जुड़ा हो तो…
हम बात कर रहे हैं पहाड़ी बाबा मंदिर की। जो कि झारखंड की राजधानी रांची में स्थित है। पहाड़ी मंदिर रांची का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। कहते हैं कि पहाड़ी मंदिर 17वीं शताब्दी में बनाया गया था।
इस मंदिर का महत्व विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बढ़ गया था, जब इसे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में उपयोग किया गया था। पहाड़ी बाबा मंदिर का पुराना नाम तिरीबुरू था, जिसे बाद में ब्रिटिश काल में बदलकर ‘हैंगिंग गैरी’ कर दिया गया, क्योंकि भगवान शिव का यह मंदिर देश की आजादी से पहले अंग्रेजों के कब्जे में था और वे यहां स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देते थे।
यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां तिरंगा फहराया जाता है। इस परंपरा की शुरुआत रांची के एक स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने स्वतंत्रता उपरांत सबसे पहले तिरंगा फहराकर की थी। उस समय से लेकर अब तक हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां देश के लिए शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों की याद और सम्मान में तिरंगा फहराया जाता है।
पहाड़ी मंदिर में एक पत्थर है, जिस पर 14 और 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को देश की आजादी का संदेश लिखा हुआ है।
रांची के इस पहाड़ी मंदिर में स्थित शिवलिंग की अपनी अनोखी विशेषताएं और धार्मिक महत्व है। यहां के शिवलिंग से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें हैं जो इस शिवलिंग को खास बनाती हैं।
प्राकृतिक शिवलिंग
पहाड़ी मंदिर का शिवलिंग प्राकृतिक है और यह पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है। यह स्वाभाविक रूप से निर्मित माना जाता है। साथ ही इसे विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। सावन के महीने में इस मंदिर में काफी अधिक भीड़ मौजूद रहती है। इसके अलावा महाशिवरात्रि और नागपंचमी के मौके पर भी यहां लाखों भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
प्राचीन मंदिर
शिवलिंग की पुरातनता इसे एक विशेष धार्मिक महत्व प्रदान करती है। ऐसा माना जाता है कि यह कई सदियों पुराना है और यह मंदिर 17वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस पहाड़ की आयु 980 से 1200 मिलियन वर्ष है।
धार्मिक अनुष्ठान
यहां पर महाशिवरात्रि और सावन के महीने में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जिसमें हजारों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं। रांची के पहाड़ी मंदिर से कुछ अनूठी परंपराएं जुड़ी हैं। जैसे, यहां आदिवासी सबसे पहले नाग देवता की पूजा करते हैं। इसके बाद पहाड़ी बाबा का दर्शन करते हैं।
पवित्र जल से अभिषेक
यहां शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा है। भक्त घंटों पंक्ति में लगे हुए अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करते हैं। सावन में सोमवार को जलार्पण करने के लिए रविवार रात से ही लाइन लगनी शुरू हो जाती है। भक्तगण यहां पवित्र जल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
स्थानीय मान्यता
स्थानीय लोगों के बीच इस शिवलिंग के चमत्कारिक प्रभावों और आशीर्वाद की मान्यता है। इसे संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य, और समृद्धि के लिए विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है।
स्वतंत्रता संग्राम का जुड़ाव
इस मंदिर और शिवलिंग का स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
यह शिवलिंग भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है और इसकी पूजा-अर्चना से आध्यात्मिक शांति और संतोष की अनुभूति होती है।
ऊंचाई से मनोहारी दृश्य
यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, जो शहर के केंद्र से लगभग 300 फीट की ऊंचाई पर है। यहां से रांची का अद्भुत दृश्य देखा जा सकता है। साथ ही सूर्योदय और सूर्यास्त के मनोरम दृश्य भी देखे जा सकते हैं।
सांस्कृतिक महत्व
यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यहां सावन के महीने में और महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन होते हैं, जो भक्तों के आकर्षण का केंद्र होता है।
पवित्र जल स्रोत
मंदिर परिसर में एक पवित्र जल स्रोत भी है, जिसे भक्त पवित्र मानते हैं और इसमें स्नान करते हैं।
468 सीढ़ियां
मंदिर तक पहुंचने के लिए 468 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह यात्रा भक्तों के लिए धार्मिक और शारीरिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह ऐसा अनूठा मंदिर है जहां पहुंचने पर भक्तों को एक साथ ही देशप्रेम और ईश्वर के प्रति आस्था का अनुभव होता है। क्रांतिकारियों को दी जाने वाली फांसी की कहानियां एक तरफ रगों में राष्ट्रभक्ति भरती है तो वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी बाबा की भक्ति में शीश सहज ही झुक जाता है।