एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती नागपुर में धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ व्याख्यान दे रहे थे। उनका व्याख्यान कुछ लोगों को बुरा लगा और उन्होंने स्वामी जी को पीटने की योजना बना डाली। एक बदमाश लठैत को स्वामी जी के पास भेजा गया। लठैत ने कहा, ‘तुम हमारे धार्मिक विश्वासों का खंडन करके भगवान का अपमान करते हो। बोलो, मैं तुम्हारे किस अंग पर पहले प्रहार करूं?’ स्वामी जी मुस्कुराकर बोले, ‘मेरा मस्तिष्क ही मुझे प्रत्येक कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। अत: आप मेरे सिर पर ही पहले प्रहार करें।’ उनकी निर्भीकता को देखकर वह बदमाश आश्चर्यचकित रह गया। वह तुरंत स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और उनसे क्षमा मांगते हुए बोला, ‘स्वामी जी, मुझे माफ कीजिए। मैंने आपको ठीक से नहीं पहचाना था। आज आपने मेरी आंखें खोल दी।’ बाद में वह स्वामी जी का शिष्य बन गया।
प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार