जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 31 जुलाई
जिले में मानसून की बेरुखी ने किसानों से लेकर प्रवासी मजदूराें, सबके समीकरण पूरी तरह गड़बड़ा दिए हैं। सबसे बुरी हालत उन किसानों की है, जिन्होंने ठेके पर जमीन लेकर धान की रोपाई की है।
जींद जिला प्रदेश के प्रमुख धान उत्पादक जिलों में शामिल है। जिले में लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। इस बार धान का रकबा एक लाख हैक्टेयर तक भी नहीं पहुंच पाया है। इसकी वजह 27 जून से 31 जुलाई तक मानसून की बारिश लगभग शून्य रहना है। जिले में मानसून की सबसे ज्यादा बारिश जून और जुलाई में होती है। अब तक जींद जिले में मानसून की केवल एक बारिश 26 जून को हुई थी। पूरा जुलाई महीना बिना बारिश के गुजर गया। इसी कारण लगभग 50000 हैक्टेयर जमीन धान की रोपाई के बिना खाली रह गई है।
इस बार महंगे ठेके पर ली जमीन, मानसून की बेरुखी ने तोड़ दी कमर
जींद जिले में इस साल जमीन के ठेके सबसे ज्यादा रहे। सफीदों उपमंडल के कई गांवों, जहां धान सबसे ज्यादा होती है, वहां जमीन का ठेका 90000 रुपए प्रति एकड़ तक गया है, तो दूसरे गांवों में 60000 से 70000 रुपए प्रति एकड़ का ठेका इस बार मिला है। जिले में बड़ी संख्या में किसान दूसरे किसानों की जमीन ठेके पर लेकर खेती करते हैं। मानसून की बेरुखी की सबसे ज्यादा मार इन्हीं किसानों पर पड़ी है। धान की एक एकड़ फसल पर अब तक औसतन 16000 खर्च हो चुके हैं और धान की फसल है कि बिना बारिश खेतों में सूख रही है। जिन किसानों ने जमीन ठेके पर लेकर धान की रोपाई की है, उनका खर्च प्रति एकड़ औसतन 40000 तक जा चुका है। अगर अब भी बारिश नहीं हुई, तो यह किसान कहीं के भी नहीं रहेंगे। रूपगढ़ गांव के युवा किसान संदीप के अनुसार उसने 5 एकड़ में धान की रोपाई की है। जमीन उसकी खुद की अपनी है। अब तक वह 80000 रुपए से ज्यादा धान की खेती पर खर्च कर चुका है, और धान खेत में सूख रही है। एक सप्ताह और बारिश नहीं हुई, तो धान के खेतों में ट्रैक्टर चलाना पड़ेगा। इसी तरह की बात खरकरामजी के श्यामलाल मलिक, भंबेवा के किसान कुलबीर, काला, महेंद्र, घोघड़ियां के विरेंद्र, प्रदीप, सतीश आदि ने कही। कुलबीर, महेंद्र, विरेंद्र, प्रदीप और संदीप जैसी स्थिति जींद जिले के ज्यादातर धान उत्पादक किसानों की है। नरवाना और सफीदों का कुछ क्षेत्र छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी जगह किसान सूखे के कारण बर्बादी के कगार पर हैं।
प्रवासी मजदूरों के सामने भी बड़ा संकट
जींद जिले में 30000 से ज्यादा प्रवासी मजदूर धान की रोपाई के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से आए हुए हैं। मानसून की बारिश नहीं होने के कारण इन मजदूरों को पूरा काम नहीं मिल पाया। जिले में मानसून सामान्य रहती तो इन प्रवासी मजदूरों को धान रोपाई के काम से सांस लेने की भी फुर्सत नहीं होती, लेकिन इस समय ज्यादातर मजदूर बिना काम खाली बैठे हैं।
20 घंटे मिले बिजली
हरियाणा किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष फूल सिंह श्योकंद, जो खुद कृषि विभाग में कृषि विकास अधिकारी रहे हैं, ने सूखे जैसे हालात पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि खेतों में खड़ी धान और गन्ने की फसल खतरे में है। अब धान और गन्ने की फसल को बचाने के लिए किसानों को 20 घंटे बिजली दी जाए। नहरों में पूरा महीना पानी चलाया जाए, तब जाकर किसान की कुछ मदद हो सकती है।