इसमें दो राय नहीं कि खेलों के विकास के लिये वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार द्वारा लायी गई योजना ‘खेलो इंडिया’ खेलों के विकास की दृष्टि से एक अभिनव योजना थी। जिसका मकसद था कि देश भर में खेलों में सामूहिक भागीदारी बढ़ाने के साथ खेलों की उत्कृष्टता को भी संबल मिले। जिसके मूल में मकसद यह भी था कि देश में खेलों के बुनियादी ढांचे के निर्माण व उन्नयन में मदद मिले। जिसको लेकर केंद्र सरकार का दावा था कि यह योजना खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में उच्चस्तरीय प्रदर्शन के लिये प्रेरित करेगी। निश्चित रूप से देश के कई राज्य राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को तैयार करने के मामले में दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर भी रहे हैं। लेकिन इस योजना की सफलता तभी तार्किक हो पाएगी जब आर्थिक सहायता खिलाड़ियों के प्रदर्शन और सफलता के आधार पर तय होगी। जैसे कि देश में विभिन्न उद्योगों में स्वस्थ प्रतियोगिता विकसित करने के लिये उद्योगों की सफलता का मानक उत्पादन का स्तर तथा गुणवत्ता होती है। कमोबेश खेलों में भी स्वस्थ स्पर्धा को बढ़ाने के लिये इस तर्ज पर आर्थिक सहायता दिये जाने की उम्मीद की जाती रही है। कहने का अभिप्राय यह है कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों को आर्थिक रूप से पुरस्कृत किया ही जाना चाहिए। फिलहाल देश के विभिन्न राज्यों के खिलाड़ी वर्षों के अभ्यास व कड़ी मेहनत के बाद पेरिस ओलंपिक में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसी बीच केंद्र की खेलो इंडिया योजना के तहत खेलों के बुनियादी ढांचे के विकास के लिये राज्यों को आवंटित धन को लेकर एक अप्रिय विवाद खड़ा हो गया है। निश्चित रूप से यह अप्रिय विवाद उठने का समय असंगत है। निश्चित रूप से पेरिस ओलंपिक में पदक जीतने के लिये संघर्ष कर रहे खिलाड़ियों के मनोबल पर इसका धनात्मक प्रभाव तो नजर नहीं ही आएगा।
दरअसल, कांग्रेसी नेतृत्व वाले मुखर विपक्ष और कुछ खेल पंडितों का आरोप है कि राज्यों को आर्थिक राशि वितरण में भेदभाव किया गया है। आरोप है कि केंद्र ने हरियाणा-पंजाब जैसे राज्यों के साथ भेदभाव किया है। दलील है कि पेरिस ओलंपिक में भाग लेने गये भारतीय खिलाड़ियों के दल में संख्या के हिसाब से पांचवां हिस्सा हरियाणा से है। लेकिन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं मे धूम मचाने वाले हरियाणा के हिस्से में खेलो इंडिया योजना के तहत महज 66.6 करोड़ रुपये ही आए हैं। वहीं दूसरी ओर गुजरात, जिसके चुनिंदा खिलाड़ी ही पेरिस ओलंपिक में खेलने गए हैं, उसे खेलो इंडिया योजना के तहत 426 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई। उत्तर प्रदेश को भी योजना के तहत 438 करोड़ रुपये मिले। विपक्षी दलों का कहना है कि उत्तर प्रदेश से सिर्फ छह ही एथलीट ओलंपिक में भाग लेने गए हैं। वहीं पुरुष हॉकी में दबदबा रखने वाले पंजाब के हिस्से में खेलों के संरचनात्मक विकास के लिये सिर्फ 78 करोड़ रुपये ही आए हैं। विपक्षी दल के राजनेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने इस योजना के अंतर्गत धन आवंटन के लिये किन मापदंडों का पालन किया गया, उसे सार्वजनिक करने की जरूरत है। निस्संदेह, देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले उ.प्र. जैसे राज्य के लिये अधिक आर्थिक सहायता तार्किक हो सकती है। लेकिन केंद्र सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि इस राशि के आवंटन में क्या भौगोलिक क्षेत्र धनराशि बांटने का आधार रहा या जनसंख्या का आकार? यदि कोई अन्य वजह है तो उसका स्पष्टीकरण किया ही जाना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि किसी भी स्थिति में हर तरह की विसंगति को दूर करने के लिये इस योजना की गहन समीक्षा की जरूरत महसूस की जा रही है। सतर्कता की जरूरत है कि किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार या लालफीताशाही किसी भी हालत में खेलों इंडिया की पवित्र भावना के साथ खिलवाड़ न कर सके। इसके अलावा यह भी जरूरी है कि विभिन्न राज्यों को इस योजना के तहत मिले धन के उपयोग की भी सतर्क निगरानी की जाए। जिससे खेलों के अनुकूल वातावरण बनाने में मदद मिल सके।