घटना 1943 की है, जब लता मंगेशकर महज 14 वर्ष की थीं। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो चुका था और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। लता को अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। एक दिन मुंबई में भारी बारिश हो रही थी। लता को एक संगीत निर्देशक से मिलने जाना था, जिन्होंने उन्हें एक गाने के लिए बुलाया था। यह उनके करिअर के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था। लेकिन उनके पास न तो छाता था और न ही बारिश से बचने का कोई अन्य साधन। फिर भी लता ने हिम्मत नहीं हारी। वे भारी बारिश में पैदल ही चल पड़ीं। वे पूरी तरह भीग गईं, उनके कपड़े कीचड़ से सन गए। जब वे स्टूडियो पहुंची, तो संगीत निर्देशक उन्हें इस हालत में देखकर हैरान रह गए। उन्होंने लता से पूछा कि वे इतनी भारी बारिश में क्यों आईं। लता ने बड़ी सादगी से जवाब दिया, ‘आपने मुझे बुलाया था, और मैं अपना वादा निभाना चाहती थी।’ संगीत निर्देशक लता के समर्पण और प्रतिबद्धता से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने न केवल लता को उस गाने के लिए चुना, बल्कि उन्हें और भी कई गाने गाने का मौका दिया।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार