गोविंद शर्मा
अब सबके हाथ में पॉलिथीन बैग होते हैं कोई थैला रखता ही नहीं। इसलिए एक ही थैली के चट्टे-बट्टे नहीं होते। अब होते हैं एक ही ताल के मेढक। अशोक गौतम के नव प्रकाशित व्यंग्य संग्रह का शीर्षक यही है ‘हम फ्रॉग हैं सेम ताल के।’ कई व्यंग्य संग्रहों के रचयिता अशोक गौतम के नए व्यंग्य संग्रह का पहला आकर्षण उनके आलेखों के चुटीले शीर्षक ही हैं। इंस्पेक्टर खाता दीन सुवाच, काश मैं चूहा ही होता, फर्जी हुई तो क्या हुई, कॉपी कट पेस्ट, मैं तो कुत्तिया बॉस की आदि 47 व्यंग्य आलेखों में राजनीति जिंदा हैं। मतलब ज्यादा व्यंग्य राजनीति वालों पर है, जो हमेशा व्यंग्य प्रूफ, कि शर्म प्रूफ होते हैं, पर उनके हावभाव, कृत्य और बोल व्यंग्य के लिए सुलभ होते हैं।
निश्चित मत होइए व्यंग्यकार की नजर से आप बचे नहीं हैं। आप यानी धार्मिक मीठे के शौकीन (मालपुआ मय हर कथा सुहानी), साइड बिजनेस करने वाले (व्यंग्यकार शू स्टोर,) पुरस्कार प्रेमी (पुरस्कार दास जी की पुरस्कार यात्रा), मोबाइल प्रेमी बीवी ओल्ड, बीवी न्यू, बीवी गोल्ड, बीवी) यानी आप कोई भी हो, अशोक गौतम की नजरों से बचे नहीं हैं।
अशोक गौतम सुस्थापित व्यंग्यकार हैं, इसलिए जिन पर गुस्सा या खुश है, किसी को न तो गाली दी है और न लाड़ लड़ाया है, बल्कि शरशैय्या पर सुलाया है। यानी चुभोया भी और रोने भी नहीं दिया।
लगता है व्यंग्य आलेख इस संग्रह में आने से पहले पत्र-पत्रिकाओं में अपनी भूमिका निभा चुके हैं। इसलिए अपने आकार में सीमित है, वरना कुछ आलेख तो ऐसे हैं जो विस्तार मांगते से लगते हैं। उनके व्यंग्यों की भाषा के आधार पर कह सकते हैं कि व्यंग्यकार सभ्य है, पर व्यंग्य तीखे हैं।
पुस्तक : हम फ्रॉग हैं सेम ताल के लेखक : अशोक गौतम प्रकाशक : साहित्य संस्थान, गाजियाबाद पृष्ठ : 134 मूल्य : रु. 300.