शिमला, 5 अगस्त(हप्र)
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बैंक पर लगाए धोखाधड़ी के आरोप से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा कि अपराध करने पर बैंक को समन जारी करना कानूनन सही है। बैंक एक न्यायिक व्यक्ति है और इसकी शाखाएं उसके अंग हैं। अपराध करने पर किसी व्यक्ति के अंग को समन जारी कर बुलाया नहीं जा सकता बल्कि अपराध करने वाले व्यक्ति को ही बुलाना पड़ता है, इसी तरह किसी कंपनी की शाखा को समन जारी कर बुलाया नहीं जा सकता। यह धारणा सही नहीं है कि बैंक की शाखाएं अलग-अलग न्यायिक व्यक्ति हैं। न्यायाधीश राकेश कैंथला ने बैंक की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता ने ट्रायल कोर्ट में इंडसइंड बैंक को पार्टी बनाया है। इसलिए इंडसइंड बैंक को समन जारी कर बुलाया जाना चाहिए। यह बैंक को तय करना होगा कि अदालत के समक्ष उसका प्रतिनिधित्व कौन करेगा।
मामले के अनुसार शिकायतकर्ता भूपिंदर सिंह रोहल ने शिमला में न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत एक याचिका दायर कर इंडसइंड बैंक और जे.पी. मोटर्स के अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी करने से जुड़ी एफआईआर दर्ज करने के लिए बालूगंज पुलिस स्टेशन के एसएचओ को निर्देश देने की मांग की थी। शिकायतकर्ता का कहना था कि उसने जे.पी. मोटर्स के शोरूम जाकर सभी टैक्स मिलाकर 5,19,596 रुपये की कीमत के साथ टाटा इंडिगो ईसीएस एलएस बीएस-III को चुना। जे.पी. मोटर्स के मैनेजर ने शिकायतकर्ता को बताया कि उन्होंने ग्राहकों को वित्त/ऋण सुविधाएं प्रदान करने के लिए इंडसइंड बैंक, द मॉल, शिमला के साथ गठजोड़ किया है। उसे बताया गया कि इंडसइंड बैंक के अधिकारी सभी औपचारिकताएं पूरी करेंगे और उसी दिन वाहन की डिलीवरी कर दी जाएगी। शिकायतकर्ता इंडसइंड बैंक से अपनी कार फाइनेंस कराने के लिए राजी हो गया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने संबंधित अधिकारियों को 1,68,000 रुपये मार्जिन मनी के रूप में सौंपी। आरोप है कि इसके बाद बैंक ने 7.92 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर 3,52,000 रुपये का ऋण स्वीकृत किया। शिकायतकर्ता के अनुसार ऋण जनवरी 2013 से शुरू होकर दिसंबर 2016 में समाप्त होने वाले 48 महीनों के लिए 13,800 रुपये की ईएमआई के साथ चुकाया जाना था। शिकायतकर्ता का कहना था कि 3 मार्च 2015 तक उसने देय राशि का भुगतान कर दिया, लेकिन उसे बताया गया कि 3,58,477 रुपये की राशि अभी भी बकाया है।
इसके बाद शिकायतकर्ता का कहना है कि उसने खाते का विवरण देखा और पाया कि ऋण राशि 3,52,000 रुपये के स्थान पर 4,92,000 रुपये दिखाई गई थी और वाहन का मूल्य 5,19,596 रुपये के स्थान पर 6,60,000 रुपये दिखाया गया था। शिकायतकर्ता का आरोप है कि उसके खाते के विवरण में दर्शाया गया था कि उसने टाटा इंडिगो टॉप मॉडल ईसीएक्सवीएक्स-1396 खरीदा था, जबकि वास्तव में उसने बेस मॉडल टाटा इंडिगो ईसीएस एलएस बीएस-III खरीदा था। शिकायतकर्ता ने बैंक को यह विसंगति बताई और कार का मूल पंजीकरण प्रमाणपत्र भी दिखाया। परंतु आरोप है कि बैंक मैनेजर और स्टाफ ने शिकायतकर्ता को उसकी गाड़ी जब्त करने और पूरी रकम वसूलने की धमकी दे दी। शिकायतकर्ता ने पुलिस से संपर्क किया लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। शिकायतकर्ता ने पुलिस अधीक्षक शिमला को रिपोर्ट सौंपी लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए, मामले को जांच के लिए पुलिस को सौंपने के लिए न्यायिक दंडाधिकारी शिमला के समक्ष याचिका दायर की गई थी।