मोहाली, 5 अगस्त (हप्र)
मोहाली में करोड़ों रुपये के अमरूद बाग मुआवजा घोटाले में सहआरोपी नायब तहसीलदार जसकरण सिंह बराड़ ने सोमवार को मोहाली अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया। आरोपी मामला दर्ज होने के बाद से फरार था। आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी अग्र्रिम जमानत याचिका लगाई थी जिसे खारिज कर दिया गया था। उसके बाद आरोपी ने आज अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया। अदालत ने विजिलेंस को इसकी जानकारी दी, जिसके बाद विजिलेंस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों के खिलाफ विजिलेंस ब्यूरो पुलिस स्टेशन फ्लाइंग स्क्वाड मोहाली में मामला दर्ज है। आरोप है कि उक्त नायब तहसीलदार ने खसरा गिरदावरी रिकॉर्ड, जिसके साथ छेड़छाड़ की गई थी, को नजरअंदाज करते हुए एक ही दिन में तीन बार डिटेल फाइल निपटाकर भुगतान की सिफारिश करने में अनुचित जल्दबाजी की। प्रवक्ता ने बताया कि शुरूआत में बराड़ को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 11 दिसंबर 2023 के आदेश के तहत अंतरिम राहत दी थी, जिसमें उन्हें जांच में शामिल होने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद वह जांच में शामिल हुए लेकिन ब्यूरो के साथ सहयोग नहीं किया। विजिलेंस ब्यूरो ने हाई कोर्ट में जमानत अर्जी का कड़ा विरोध किया और आखिरकार उनकी याचिका और जवाब के खिलाफ 2 हलफनामे दाखिल किए। उन्होंने कहा कि कई सुनवाइयों और विस्तृत दलीलों के बाद उच्च न्यायालय ने 20 मार्च 2024 के 25 पेज के आदेश के माध्यम से उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद जसकरण सिंह बराड़ लगातार भगौड़ा बने रहे और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए विशेष अनुमति याचिका दायर की। करोड़ों रुपये के इस घोटाले में आरोपी की भूमिका और कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर कानूनी प्रक्रिया से बचने के उसके कदाचार के बारे में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी और उसे एक सप्ताह के अंदर विजिलेंस के जांच अधिकारी के समक्ष आत्मसमर्पण करने को कहा।
विजिलेंस प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अमरूद के बाग से संबंधित मुआवजा वितरण घोटाले में जसकरण सिंह बराड़ की भूमिका सामने आने के बाद इस मामले में बराड़ को आरोपी के रूप में नामजद किया गया था। इस मामले की जांच के दौरान पता चला था कि फर्जी लाभार्थियों को मुआवजा जारी करने में जसकरण सिंह बराड़ और इस मामले के मुख्य आरोपी के बीच आपसी मिलीभगत थी। जांच में सामने आया था कि भुगतान जारी करने से पहले रिकॉर्ड में पाया गया कि कुछ भूमि मालिकों के नाम और हिस्सेदारी राजस्व रिकॉर्ड से मेल नहीं खाती थी।