ज्ञानेन्द्र रावत
देश की राजधानी दिल्ली अब रहने की दृष्टि से बेहतर तो नहीं कही जा सकती है। प्रदूषण की मार से तो दिल्लीवासी पहले ही से त्रस्त हैं, साफ हवा में सांस लेने को बरसों से तरस ही रहे हैं। साथ ही सड़कों की बदहाली और पुरानी सीवेज प्रणाली की जर्जर अवस्था के चलतेे जलभराव की समस्या से उनका जीना दूभर हो गया। जहां तक जन सुविधाओं का सवाल है, तो प्रशासनिक स्तर पर भी दिल्ली की जनता केन्द्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के बीच सालों से जारी अस्तित्व की लड़ाई में पिस रही है। दोनों स्तरों की सरकारों के बीच अधिकारों को लेकर रस्साकशी में दिल्लीवासियों की परेशानियों का समाधान नहीं हो पा रहा। वे सुकून से जिंदगी बसर नहीं कर पा रहे हैं।
जहां तक सड़कों का सवाल है, पीडब्ल्यूडी द्वारा, सुप्रीम कोर्ट की रोड सेफ्टी कमेटी के मुताबिक, बीते साल जुलाई से नवम्बर के बीच आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर किये सड़क सुरक्षा के उद्देश्य से हुए ऑडिट में फुटपाथ की स्थिति, संरचना, डिजाइन और सीवेज सिस्टम को लेकर गंभीर सवाल उठाये गये हैं। इसमें गंभीर चिंता व्यक्त की गयी कि राजधानी दिल्ली में करीब 46 फीसदी जोनों में यातायात को सुगमता पूर्वक सुरक्षित चलाने को जो कदम उठाये जाने चाहिए थे, उनका अभाव रहा है। जबकि दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने का दावा लगातार किया जाता है लेकिन हालात इसके उलट गवाही देते हैं।
दिल्ली की सड़कें तो सड़कें, जंक्शन और फुटपाथ भी सुरक्षित नहीं हैं। सड़क सुरक्षा को लेकर उठे सवालों के मद्देनजर 69 फीसदी रोड साइनेज इंडियन रोड कांग्रेस के मानकों पर खरे नहीं उतरते। फुटपाथ भी मानकों के अनुरूप नहीं। इंडियन रोड कांग्रेस के मुताबिक सड़कों की फुटपाथ की चौड़ाई 2.5 मीटर होनी चाहिए ताकि दो व्हील चेयर एक साथ गुजर सकें। लेकिन केवल 25 फीसदी फुटपाथ इन मानकों के अनुरूप हैं जो राहगीरों के लिए उपयुक्त हैं। फुटपाथों की हालत बेहद ही खराब है। कहीं उनकी टाइल्स उखड़ी पड़ी है तो कहीं पूरी तरह ही टूटा पड़ा है। वहां चलना भी मुश्किल है।
पुरानी दिल्ली की बात छोडि़ए, रिंग रोड भी बदहाली का शिकार है। रिंगरोड पर जहां सबसे ज्यादा वाहन गुजरते हैं, उस पर मजनूं का टीला, चंदगीराम के अखाड़े के आसपास की सड़कें जर्जर अवस्था में हैं, वे टूटी पड़ी हैं। वहां जेब्रा क्रॉसिंग की मार्किंग भी नहीं है, या नजर नहीं आती है। इससे राहगीरों को सड़क पार करने में परेशानी होती है। हादसों की आशंका सदैव बनी रहती है सो अलग।
पूर्वी दिल्ली की वजीराबाद रोड का हाल भी ऐसा ही है। यहां सबसे ज्यादा व्यस्त रहने वाला लोनी-गोकुलपुरी रोड वाला जंक्शन यानी गोल चक्कर जहां से गाजियाबाद को सड़क जाती है, टूटे होने और जेब्रा क्रॉसिंग न होने के चलते हादसों को न्योता दे रहा है। सबसे ज्यादा खतरनाक हालात आजादपुर चौक, भलस्वा चौक, मुकरबा चौक, बुराड़ी चौक, पंजाबी बाग चौक, गाजीपुर फ्लाई ओवर, मुर्गा मंडी, मुकुंदपुर चौक, मधुबन चौक और रजोकरी फ्लाई ओवर की है जहां सड़क हादसे आम हैं।
अब जरा दिल्ली की जल निकासी पर भी नजर डालें। हालात इस बात की गवाही देते हैं कि दिल्ली का दशकों पुराना ड्रेनेज सिस्टम यहां की जल निकासी की मात्रा की दृष्टि से अब इतना पुराना हो चुका है कि राजधानी दिल्ली की करीब सवा दो करोड़ आबादी का जल तथा गंदे पानी का भार सहने की क्षमता खो चुका है। फिर भी दिल्ली उसी 48 साल पुराने ड्रेनेज सिस्टम पर आश्रित है जब यहां आबादी मात्र 60 लाख के आस-पास होती थी। यही वह कारण है कि जरा-सी बारिश में दिल्ली पानी-पानी हो जाती है और यदि बारिश तगड़ी हो गयी और वह घंटों तक जारी रही, उस हालत में दिल्ली जलभराव से डूब ही जाती है।
यह हालत अब पुरानी दिल्ली की ही नहीं होती, लुटियन जोन नयी दिल्ली भी जलभराव का शिकार हुए बिना नहीं रहती। इन सबके लिए जिम्मेदार पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था न होना और नालों की समय-समय पर सफाई न होना है। तेज बारिश के चलते जलभराव होने से कहीं सड़क धंसने से गड्ढे हो जाते हैं, कहीं सीवर के मैनहोल में स्कूटर समा जाते हैं तो कभी राहगीर। कभी-कभी तो लुटियन जोन में भी घंटों आवाजाही बंद हो जाती है। ऐसे में दुपहिया वाहनों, कारों का गंदगी से भरे पानी में लगे जाम में घंटों फंसे रहना उनकी नियति बन चुकी है। गलियों-सड़कों पर पानी भरकर सड़क धंसने से वाहनों का पानी में डूबना और जमीन में समा जाने जैसे हादसे भी अब आम हैं।
जाहिर है यह सब जलभराव से निपटने के सरकारी दावों की नाकामी का सबूत है। वह बात दीगर है कि पीडब्ल्यूडी यह दावा करते नहीं थकती कि जलभराव के चलते जल निकासी हेतु सैकड़ों पंप लगाये जाते हैं लेकिन बारिश के विषम हालात, नालों की सफाई न होने और उनमें गंदगी भरे रहने से जल्दी जल भराव से निजात मिल पाना मुश्किल हो जाता है।
कहीं-कहीं तो जलभराव की दशा में हादसों की आशंका के मद्देनजर रास्ते और अंडरपास तक बंद करने पड़ते हैं। ज्यादातर ऐसी हालत से लोगों को आजाद नगर मार्केट ब्रिज, मूलचंद अंडर पास, जखीरा अंडर पास, मिंटो ब्रिज, आईटीओ, गणेश नगर मदर डेयरी, प्रगति मैदान आदि जगहों पर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जिससे कभी-कभी कार्यस्थल पर भी समय से पहुंचना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। बदहाली की यह स्थिति तो कमोबेश दिल्ली वालों की नियति बन चुकी है। ऐसे में दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी की संज्ञा देना बेमानी है।