आलोक पुराणिक
मुगलों का जिक्र होते ही औरंगजेब का जिक्र बहुत जोर से होने लगता है। मुगलों में ऐसे भी हुए हैं, जो बहुत उदार नजरिये के थे, जो खुला दिमाग रखकर सबको साथ लेकर चलने वाले होते थे। दारा शुकोह ऐसे ही मुगल थे, जो औरंगजेब के हाथों मारे गये, सत्ता संघर्ष में।
मैनेजर पांडेय की पुस्तक ‘दारा शुकोह-संगम संस्कृति का साधक’में दारा शुकोह के लेखन का विस्तार से जिक्र किया है। पर दारा शुकोह सिर्फ सत्ता के पुजारी नहीं थे, वे पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति थे। दारा शुकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद फारसी में किया 1657 में। सन् 1801 में इन उपनिषदों का लैटिन अनुवाद हुआ। आगे यह अनुवाद यूरोप पहुंचा। उपनिषदों के साथ दारा ने श्रीमद्भगवद्गीता और योग वशिष्ठ का भी फारसी में अनुवाद किया। दारा शायर भी थे।
दारा बुद्धिजीवी थे, शायर थे बस सत्ता के दांव-पेच जानने वाले न थे, योद्धा न थे। दूसरी तरफ औरंगजेब का ताल्लुक व्यापक लिखाई-पढ़ाई से न था। औरंगजेब खालिस राजनीतिज्ञ और योद्धा था, मैदान-ए-जंग में दारा शुकोह के काम उसका ज्ञान न आया, युद्ध में दारा शुकोह की हार हुई और आखिर में दारा की मौत औरंगजेब के हाथों ही हुई।
सारे मुगल कट्टर नहीं थे, दारा शुकोह भी थे, जिन्होंने भारतीय विचार को समझने की कोशिश की। इतिहास और साहित्य के प्रेमियों को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए।
पुस्तक : दारा शुकोह – संगम संस्कृति का साधक लेखक : मैनेजर पांडेय प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 191 मूल्य : रु. 299.