नीरज बग्गा/ट्रिन्यू
अमृतसर, 10 अगस्त
रूसी सेना की नौकरी छोड़ने को आतुर घणुपुर काले गांव के हरप्रीत सिंह की घर वापसी जल्द संभव है। उनके गांव के ही रहने वाले ट्रैवल एजेंट दलजीत सिंह मास्को पहुंच गए हैं। मॉस्को से ट्रिब्यून के साथ फोन पर बात करते हुए दलजीत ने कहा, ‘डोनेट्स्क में तैनात हरप्रीत का आत्मविश्वास डिगने लगा था। वह सेना की नौकरी छोड़ने के लिए बेचैन था, क्योंकि उसने मौत को बहुत करीब से देखा था।’ नाउम्मीदी से घिरे हरप्रीत को घर लौटने के लिए दोस्तों और परिवार का साथ चाहिए था। दलजीत ने कहा कि उन्होंने हरप्रीत के अनुबंध को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए मॉस्को के सैन्य कार्यालय में संबंधित दस्तावेज जमा किए हैं। रूसी सेना में बड़ी संख्या में भारतीय युवा पंजाबी मूल के हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में तेजपाल सिंह की मौत के बाद, युद्ध क्षेत्र से एक और स्थानीय युवा हरप्रीत सिंह की दर्दनाक कहानी सामने आई। हरप्रीत के निर्माण मजदूर भाई वीर सिंह ने कहा कि परिवार के पास उनके घर वापस आने के लिए टिकट के पैसे नहीं थे। उन्होंने कहा कि हरप्रीत को रूस में भीषण ठंड और वहां के भोजन के साथ तालमेल बिठाने में संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि उन्हें मांसाहारी भोजन पसंद नहीं था। रेहड़ा चलाने वाले उनके पिता नरिंदर सिंह ने कहा, हरप्रीत को परिवार से बेहद स्नेह है। हरप्रीत अनपढ़ हैं। उन्हें ठीक से याद नहीं है कि वे कब रूस गए थे, लेकिन उन्हें यह याद है कि वह पिछली दिवाली से पहले रूस आए थे।
वह खौफनाक मंजर
हरप्रीत के अनुभवों को साझा करते हुए दलजीत ने बताया कि एक रात पहले उन्होंने जिन सात लोगों के साथ खाना खाया था, उनमें से चार अगले दिन युद्ध क्षेत्र से वापस नहीं लौटे। हरप्रीत को भाषा संबंधी गंभीर समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि वह पंजाबी के अलावा कोई अन्य भाषा नहीं जानता था। रूसी अनुवादकों के लिए भी पंजाबी से सीधे अनुवाद करना मुश्किल हो रहा था।
अच्छा वेतन खींच लाता है रूस
दलजीत ने कहा कि रूस में नागरिक क्षेत्र में भी पर्याप्त नौकरियां हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में नौकरी करने पर 2.5 लाख रुपये प्रति माह वेतन मिलता है, जबकि गैर-सैन्य क्षेत्र में लगभग 70,000 रुपये कमाए जा सकते हैं। यही कारण है कि भारत से कई युवा रोजगार की तलाश में रूस पहुंच रहे हैं और उनमें से अधिकांश हरियाणा से हैं।