धर्मशास्त्रों के मुताबिक पुत्रदा एकादशी को व्रत रखने पर एक यज्ञ के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है, साथ ही यह व्रत करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। इस दिन व्रत रखने वालों को जितना भी संभव हो, दीन, हीन और असहाय लोगों को दान देना चाहिए।
आर.सी. शर्मा
सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं। यह साल की अन्य एकादशियों से श्रेष्ठ मानी जाती है। क्योंकि इस एकादशी का व्रत करने पर निःसंतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस शुभ तिथि पर संतान की इच्छा रखने वाले दंपति विधि-विधान से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। इस साल पुत्रदा एकादशी 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी और 16 अगस्त को सुबह 9 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी। लेकिन व्रत 16 अगस्त को रखा जायेगा।
धर्मशास्त्रों के मुताबिक पुत्रदा एकादशी को व्रत रखने पर यज्ञ के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है, साथ ही यह व्रत करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है। इस दिन व्रत रखने वालों को जितना भी संभव हो, दीन, हीन और असहाय लोगों को दान देना चाहिए। ऐसा करने से व्रत रखने वालों को उनकी कामना पूरी होती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वालों को इस दिन सुबह सूर्य उगने के पहले जगना चाहिए और शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। अगर आसपास पवित्र नदियां बहती हों तो नदी में जाकर स्नान करना चाहिए। लेकिन अगर नदी में स्नान करने न जाना चाहें तो यदि घर में गंगा जल हो तो सामान्य जल में कुछ बूंदें गंगा जल की मिलाकर भी स्नान करना सही होता है। नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर पूजाघर में प्रवेश करना चाहिए और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए।
पुत्रदा एकादशी व्रत में तुलसीदल का इस्तेमाल करना बेहद शुभ माना जाता है। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के मुताबिक प्राचीनकाल में महिरूपति नगरी के राजा महीति धर्मात्मा और दानी थे, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ऋषि, मुनियों और संन्यासियों तथा विद्वानों की सभा बुलायी और उनसे संतान प्राप्ति के उपाय पूछे। इस पर एक ज्ञानी ऋषि ने कहा कि पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति के लिए श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखें और भगवान विष्णु व मां लक्ष्मी से संतान प्राप्ति की कामना करें।
ऋषि द्वारा बताये गये उपाय को राजा ने किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से हर निःसंतान दंपति श्रावण पुत्रदा एकादशी को भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी जी का व्रत रखकर और विधि-विधान से पूजा करते हैं, इससे उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जिनके संतान हैं, उन्हें इस दिन का व्रत रखने से सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है, उनकी संतानें इससे सुखी रहती हैं। पुत्रदा एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाना चाहिए, क्योंकि विष्णु भगवान को पीला रंग बहुत प्रिय है, इसलिए व्रत रखने वाले को इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। विष्णु जी की पूजा के साथ साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए और पीपल के पेड़ को जल अर्पित करना चाहिए। एकादशी का व्रत शाम को सूरज डूबने के बाद खोला जा सकता है या चाहें तो अगले दिन की सुबह व्रत खोल सकते हैं। लेकिन व्रत खोलने से पहले स्नान करना चाहिए और किसी जरूरतमंद को दान-दक्षिणा देना चाहिए। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर