अशोक गौतम
नृत्यशाला में थके देवराज इंद्र ने आराम फरमाते ज्यों ही अपने आराम कक्ष में लगा टीवी ऑन कर मृत्युलोक के सबसे सनसनीखेज चैनल पर समाचार लगाए तो वे दंग रह गए। ये क्या! पत्रकार मानसून की रिपोर्टिंग करता गले-गले तक पानी में डूबा हुआ! ये देख उन्होंने तत्काल अपने निजी सचिव को अपने पास बुलाया और आदेश दिए, ‘मानसून को इसी वक्त लाइन हाजिर किया जाए!’
देवराज इंद्र का आदेश पाते ही उनके निजी सचिव ने उसी वक्त मानसून को देवराज इंद्र के सम्मुख हाजिर होने का आदेश दिया। मानसून ने उसी वक्त बरसना बंद किया और देवराज इंद्र के दरबार में प्रस्तुत हो गया।
अपने सामने मानसून को दोनों हाथ जोड़े खड़े देख देवराज इंद्र ने मानसून से गुस्साते पूछा, ‘रे मानसून! ये मैं क्या देख रहा हूं? मैंने तो तुम्हें बरसने की पावर इसलिए डेलीगेट की थी कि मेरे पास और बहुत सारे काम हैं, पर तुम तो अपनी पावर का मिसयूज करने लग गए।’
‘क्षमा देवराज इंद्र! मैं जहां बरसता हूं वहां डेलीगेट की पावर के मिसयूज के सिवाय और कुछ होता ही नहीं। वहां चपरासी से लेकर अफसर तक सभी अपनी-अपनी पावर का जमकर मिसयूज करते हैं। इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं जनाब!’
‘तो ये समाचारों में मैं क्या देख रहा हूं?’
‘क्या महाराज!’
‘तुम्हारे कारण संसद की छत टपक रही है। पुल गिर रहे हैं। घर गिर रहे हैं। और तो छोड़ो, स्मार्ट शहर तक तुमने पानी-पानी करके रख दिए हैं। जिधर देखो पानी ही पानी भरा हुआ है। चकाचक सड़कें उखड़ रही हैं।’
मानसून ने निवेदन किया, ‘जनाब! मेरे कारण आप जिस संसद की छत टपकने की बात कर रहे हैं, वह मेरे कारण नहीं टपक रही। उसके टपकने की वजह कुछ और ही है। सच कहूंगा तो मुश्किल हो जाएगी। जिन पुलों को आप मेरे मद से गिरने का मुझ पर आरोप लगा रहे हैं जनाब! माफ कीजिएगा! वे भी मेरे मद के कारण नहीं, भारी सदाचार के कारण गिर रहे हैं। स्मार्ट शहरों में आप जिन सड़कों पर भरे जिस पानी को मेरी मस्ती करार दे रहे हैं, वह भी मेरी मस्ती का कारण नहीं। वह भी सदाचार की मस्ती के कारण है जनाब! अतः इन सबके लिए मुझे कतई दोषी न मानें।’
‘और जो अपने झोपड़े की छत से टपकते पानी में संसद की फीलिंग ले रहा है वह?’
‘जनाब! यह तो खुशी की बात है कि झोपड़े वाले भी बिन चुनाव लड़े संसद की फीलिंग ले रहे हैं। सच्चे लोकतंत्र की यही असली पहचान होती है साहब!’ मानसून ने हंसते हुए कहा तो देवराज देवराज इंद्र ने टीवी बंद कर दिया।