नयी दिल्ली, 14 अगस्त (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक अप्रैल 2005 के बाद से केंद्र सरकार, खनन कंपनियों से खनिज संपन्न भूमि पर रॉयल्टी का पिछला बकाया वसूलने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र, खनन कंपनियों द्वारा खनिज संपन्न राज्यों को बकाये का भुगतान अगले 12 वर्ष में क्रमबद्ध तरीके से किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी के बकाये के भुगतान पर किसी तरह का जुर्माना न लगाने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि 25 जुलाई के आदेश को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील खारिज की जाती है। पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि इस अदालत ने उसके समक्ष आए सवालों का 8:1 के बहुमत से 25 जुलाई को जवाब दे दिया था और खदानों तथा खनिज-युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार राज्यों को दिया था। उन्होंने कहा कि 25 जुलाई का फैसला सुनाने के बाद केंद्र सरकार ने इस फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करने का अनुरोध किया था और मामले पर 31 जुलाई को सुनवाई की गयी थी। केंद्र ने खनिज संपन्न राज्यों को 1989 से खनिजों और खनिज-युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी उन्हें वापस करने की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि इसका असर नागरिकों पर पड़ेगा और प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) को अपने खजाने से 70,000 करोड़ रुपये निकालने पड़ेंगे।
पीठ ने कहा, ‘यह दलील खारिज की जाती है कि खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम (एमएडीए 25 जुलाई के आदेश) को आगामी प्रभाव से लागू किया जाए।’ उसने केंद्र और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों समेत खनन कंपनियों द्वारा राज्यों को बकाए के भुगतान पर शर्तें लगायीं। न्यायालय ने कहा, ‘राज्य एमएडीए (25 जुलाई के आदेश) में निर्धारित कानून के अनुसार, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-2 की प्रविष्टि 49 और 50 से संबंधित कर मांग सकते हैं या नए सिरे से कर की मांग कर सकते हैं। कर की मांग एक अप्रैल 2005 से पहले के लेनदेन पर नहीं होनी चाहिए।’
पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘राज्यों द्वारा कर लेने के लिए एक अप्रैल 2026 से 12 वर्ष की अवधि में किस्तों में भुगतान करने का समय दिया जाएगा।’’
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि 25 जुलाई, 2024 से पहले राज्यों द्वारा केंद्र और खनन कंपनियों से की गई करों की मांग पर ब्याज और जुर्माना सभी करदाताओं के लिए माफ कर दिया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि इस फैसले पर पीठ के आठ न्यायाधीश हस्ताक्षर करेंगे, जिन्होंने बहुमत से 25 जुलाई का फैसला दिया था जिसमें राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार दिया गया था। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति नागरत्ना बुधवार के फैसले पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी क्योंकि उन्होंने 25 जुलाई को अलग फैसला दिया था।
केंद्र और खनन कंपनियों ने 31 जुलाई को सुनवाई के दौरान 1989 से एकत्रित की गयी रॉयल्टी वापस करने के लिए राज्यों की मांग का विरोध किया। 25 जुलाई के फैसले ने 1989 के उस निर्णय को पलट दिया था जिसमें कहा गया था कि केवल केंद्र के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार है। इसके बाद कुछ विपक्षी दल शासित खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 के फैसले के बाद से केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी और खनन कंपनियों से लिए गए करों की वापसी की मांग की। रॉयल्टी वापस करने के मामले पर 31 जुलाई को सुनवाई हुई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।