नरेश कौशल
राष्ट्रीय सरोकारों की पत्रकारिता के 143 वर्षीय वटवृक्ष ‘द ट्रिब्यून’ की छत्रछाया में 46 वर्ष पूर्व आज के दिन यानी कि स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून और पंजाबी ट्रिब्यून के रूप में दो और बीज अंकुरित हुए। मुझे इस बात का गर्व है कि शुरुआती दौर में वर्ष 1979 से ही दैनिक ट्रिब्यून पौधे को खाद-पानी देने में मेरा तुच्छ योगदान रहा जो आज भी निरंतर जारी है। आज जहां हमारा लोकतंत्र लगातार परिपक्व हो रहा है, वहीं दैनिक ट्रिब्यून भी अपनी यात्रा के 46 वसंत पार करते हुए निरंतर अर्द्धशती की ओर अग्रसर है। पत्रकारिता के उच्च मानदंडों का अनुसरण हमारी प्राथमिकता रही है।
ऐसे वक्त में, जब देश के तमाम मीडिया घराने अखबारों को प्रोडक्ट बनाने पर तुले हैं। फलस्वरूप पत्रकारिता के उच्च मूल्यों का ह्रास होने लगा है। अनेक मीडिया घरानों ने हिंदी भाषा से खिलवाड़ करते हुए, समाज के सरोकारों से विमुख होते हुए पत्रकारिता का व्यवसायीकरण कर दिया है। ऐसी गलाकाट स्पर्धा के दौर में ट्रिब्यून ट्रस्ट के संस्थापक सरदार दयाल सिंह मजीठिया द्वारा पत्रकारिता के जरिये समाज की सेवा के लिये निर्धारित सिद्धांतों पर सतत अडिग रहना किसी चुनौती से कम नहीं है। लेकिन हमने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए राष्ट्र, समाज और साहित्य की निष्काम ढंग से सेवा करने का बीड़ा उठाया।
आज के दौर में अधिकतर अखबार जोड़तोड़ करके बढ़ाई गई अपनी प्रसार संख्या की डोंडी पीटते हैं, जबकि हमें संतोष इस बात का है कि हमारी प्राथमिकता प्रसार संख्या थी ही नहीं। हम तो पत्रकारिता, साहित्य व राष्ट्रीय मूल्यों को लेकर प्रतिस्पर्धा में अग्रणी हैं। आज भी चेयरमैन श्री एन. एन. वोहरा के कुशल नेतृत्व में ‘द ट्रिब्यून ट्रस्ट’ मौजूदा अस्वस्थ स्पर्धा में शामिल न होकर सनसनीखेज व चरित्र हनन की पत्रकारिता से परहेज करते हुए पीत पत्रकारिता से निरंतर दूरी बनाये हुए हैं। आज दैनिक ट्रिब्यून इस क्षेत्र का एक ऐसा अनूठा हिन्दी दैनिक है जिसके एक जैसे समाचार कई राज्यों में पढ़े जा सकते हैं। जिसके चलते ही राजनेताओं, नौकरशाहों और साहित्यकारों में दैनिक ट्रिब्यून की सबसे ज्यादा पैठ रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पत्र की विश्वसनीयता समाज के हर वर्ग में स्वीकार्य है। आज दैनिक ट्रिब्यून पत्रकारिता के विभिन्न आयामों को समृद्ध कर रहा है। दैनिक ट्रिब्यून में उत्तर भारत, ख़ासकर हरियाणा की धड़कनें महसूस होती हैं। पाठकों का अपार प्यार भी हमें लगातार मिलता रहा है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि पत्रकारिता के उच्च मानकों के संरक्षण के साथ ही ट्रिब्यून परिवार के कर्मियों का सर्वांगीण विकास ट्रिब्यून ट्रस्ट की प्राथमिकता रही है। ऊर्जावान और गतिशील कार्य परिस्थितियों में संस्थान के कर्मियों के व्यापक हितों को तरजीह दी गई है। तमाम सुविधाओं के साथ कार्यानुकूल वातावरण बनाने के लिये संस्थान ने अपने कर्मचारियों के लिये आवासीय कॉलोनी और उनके बच्चों के लिये उच्च गुणवत्ता के मानकों से युक्त स्कूल की व्यवस्था की है।
समाचारों की निष्पक्षता-विश्वसनीयता भी हमारे संस्थान की कसौटी रही है। पिछले साढ़े चार दशकों में संपादकीय विभाग में उपसंपादक, रिपोर्टर से लेकर संपादक तक का दायित्व निभाने का सौभाग्य मुझे मिला। इस संस्थान में स्वतंत्र रूप से काम करने के लिये मिली आजादी पर हमने हमेशा गर्व किया। दूसरे निजी संस्थानों के विपरीत हमने कभी किसी खबर को लेकर कोई दबाव महसूस नहीं किया। जैसा कि ट्रस्ट शब्द का मतलब ही विश्वास होता है। चुनाव हो या लोकतंत्र का कोई पर्व, हम पाठकों के भरोसे की कसौटी पर हर दौर में खरे उतरे हैं। उत्तर भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय ‘द ट्रिब्यून’ की छत्रछाया में हमने उच्च पत्रकारिता के मापदंडों के साथ ही भाषा की पवित्रता व मानकता को हमेशा बनाये रखा। छात्र जीवन में प्रोफेसर अक्सर हमें कहा करते थे कि अंग्रेजी भाषा सुधारनी है या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी है तो ‘द ट्रिब्यून’ पढ़ा करो। पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार तथा कर्मियों के प्रति दायित्व में यह विश्वास शिद्दत से नजर आता है। इसी विश्वास का ही परिणाम है कि एक दशक बाद दूसरी पारी में पत्रकारिता के इस महान यज्ञ में आहुति देने का पुनः सौभाग्य मुझे मिला है। हमें विश्वास है कि पाठकों के प्रोत्साहन से इस पत्र की प्राणवायु को समृद्ध विस्तार दिया जा सकता है।
पत्रकारिता के वैश्विक परिदृश्य में तकनीक व सूचना के माध्यमों में लगातार आ रहे बदलाव के बीच मीडिया के डिजिटल स्वरूप की स्वीकार्यता लगातार बढ़ी है। नयी धारा के साथ कदमताल करते हुए हमने अपने डिजिटल संस्करणों के जरिये उस नयी पीढ़ी को साथ जोड़ा है, जो मोबाइल पर समाचार से जुड़ना चाहती है। विश्वास है कि सोशल मीडिया के माध्यमों से पत्रकारिता के मिशन को विस्तार देने में हमें मदद मिलेगी।
हमारी प्राथमिकता है कि हमारे संस्थापक परम श्रद्धेय सरदार दयाल सिंह मजीठिया द्वारा निर्धारित ट्रिब्यून संस्थान के उच्च मूल्यों की विरासत की सतत रक्षा की जाए, जिसमें समाचार पत्र के प्रकाशन के दौरान अन्य व्यावसायिक कार्यों से परहेज करना भी शामिल है। हमने उच्च मानदंडों के अनुपालन के लिये तलवार की धार पर चलना मंजूर किया, यह जानते हुए भी कि बाजार में आक्रामक मार्केटिंग के जरिये मुनाफा कमाने की होड़ जारी है। आज भले ही सोशल मीडिया का दौर हो, लेकिन वहां विश्वसनीयता का बड़ा संकट है। वहां संपादक नामक संस्था का अभाव है। उन अनुभवी टीमों का अभाव है जो तथ्यों की सत्यता की पुष्टि कर सकें। वहीं, दूसरी ओर तथ्यपरकता व विश्वसनीयता हमारी प्राथमिकता हर दौर में रही है। हमने खबर और विज्ञापन के फर्क को स्पष्ट करते हुए हमेशा पाठकों का भरोसा हासिल किया है। यही वजह है कि प्रिंट मीडिया की साख आज भी सर्वाधिक बनी हुई है। इसी साख को बरकरार रखते हुए आज के पावन अवसर पर हमारी समस्त टीम पुनः निष्पक्षता, विश्वसनीयता और प्रतिबद्धता का संकल्प लेती है, प्रण लेती है।