अब्दुला बिन मुबारक एक सूफ़ी संत थे। हज से फ़ारिग होकर वे काबा में सो गए। उन्होंने स्वप्न में देखा कि एक फरिश्ता दूसरे से पूछ रहा है, ‘इस साल हज करने कितने लोग आए और कितने लोगों का हज कबूल हुआ।’ दूसरा फरिश्ता बोला’ ‘हज करने तो लाखों लोग आए पर सिर्फ एक आदमी का हज कबूल हुआ, जो वास्तव में हज करने आया ही नहीं था। वह दमिश्क का एक मोची है, जिसका नाम अली बिन मूफिक है।’ अब्दुल्ला दमिश्क में उस मोची से मिलने गए। पूछने पर मोची ने बताया कि उसकी हज करने की बड़ी लालसा थी। इसके लिए उसने सात सौ दिरम इकट्ठे किए थे, परंतु मालूम पड़ा कि पड़ोसी के बच्चे सात दिन से भूख के मारे तड़प रहे हैं। सो, वह रकम उसकी पत्नी ने गरीब पड़ोसी की मदद के लिए दे दी।’
प्रस्तुति : राजकिशन नैन