तमाम विशेषणों से नवाजे जाने वाले अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के ऐसे निर्विवाद सुपर स्टार हैं, जिन्होंने कई पीढ़ियों के दिलो-दिमाग में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज की है। फिल्मों, टीवी व कमर्शियल विज्ञापनों में उनकी निरंतर उपस्थिति हर किसी को चौंकाती है। हर तरह से साधन-संपन्न अमिताभ बच्चन के उम्र के नवें दशक में लगातार काम करने पर उनके सहयोगी और मीडिया के लोग उनसे अक्सर सवाल करते हैं कि इस उम्र में भी उन्हें लगातार काम करने की क्या आवश्यकता है? जिसका जवाब भी उन्होंने बेहद सहजता-सरलता से दिया कि यह उनके लिये काम करने का एक और अवसर है। हाल में ही में बॉक्स आफिस पर एक सफल फिल्म देने के बाद बिग-बी जल्दी ही रजनीकांत की एक अन्य फिल्म में नजर आएंगे। वहीं अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति के 16वें संस्करण की मेजबानी करते नजर आ रहे हैं। वे अपनी सक्रियता की तार्किक व्याख्या करते हैं। वे कहते हैं कि लोग उनके पेशेवर जीवन को लेकर तरह-तरह के निष्कर्ष निकालने के लिये स्वतंत्र हैं, वैसे ही उन्हें भी काम करते रहने की आजादी है। वे कहते हैं कि उनके काम करते रहने की वजह है कि उन्हें मनमाफिक काम करने के मौके मिल रहे हैं। उनका तर्क होता है कि ऐसे सवाल करने वाले लोग मेरी जगह खुद को रखकर देखें और उनको जवाब मिल जाएगा। निस्संदेह, हर व्यक्ति को यदि काम करने के अवसर मिलते हैं तो काम करने की उसे भी आजादी है। इसके जरिये हम खुद को व्यस्त रख सकते हैं। निश्चित रूप से बिग-बी अपनी सक्रियता के जरिये उम्रदराज लोगों को संदेश भी दे रहे हैं कि हमारी सक्रियता का एक पक्ष आर्थिक तो है, वहीं सामाजिक सक्रियता के चलते हमारा स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है। हमारी सामाजिक गतिशीलता से जहां हमारा एकाकीपन दूर होता है, वहीं कार्य परिस्थितियों में बदलाव से जीवन की एकरसता टूटती है। इससे हम जीवन में नई ऊर्जा व उल्लास का अनुभव करने लगते हैं।
यह विडंबना ही है कि बड़ी आबादी वाले देश भारत में व्यक्ति को एक समय व्यवस्था के चलते रिटायर मान लिया जाता है, जबकि उसमें जीवन के व्यापक अनुभव से भरपूर ऊर्जा विद्यमान होती है। निश्चित रूप से उम्र का पैमाना महज एक नंबर है। व्यक्ति को इसलिये रिटायर मान लिया जाता है कि उसकी जगह किसी दूसरे को रोजगार का अवसर मिल सके। दुनिया के तमाम विकसित देशों में प्रोफेसर, न्यायाधीश व अन्य क्षेत्रों में लोग तब तक नौकरी कर सकते हैं जब तक कि वे काम करने के लिये खुद को फिट पाते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में नये अनुसंधान और जीवन स्तर में सुधार के चलते भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में जीवन प्रत्याशा में अप्रत्याशित उछाल आया है। लोग सरकारी व अन्य क्षेत्रों से रिटायरमेंट की औपचारिकताओं से इतर कई दशकों तक बेहतर ढंग से काम करते रहते हैं। निजी और कला के क्षेत्रों में लोगों की सक्रियता इसका प्रमाण है। भारतीय लोकमानस में यह कहावत सदियों से प्रचलित रही है कि ’साठा सो पाठा’ यानी साठ के बाद भी व्यक्ति व्यापक अनुभवों के साथ चुस्त-दुरस्त होता है। वास्तव में हमारी सक्रियता व स्वास्थ्य के मूल में हमारी मनोग्रंथि की भी भूमिका होती है। यदि हम जीवन के प्रति सकारात्मक रहते हैं तो हम स्वस्थ व सक्रिय रहते हैं। जीवन के सातवें व आठवें दशक में संयमित जीवन, अनुशासित खानपान और सकारात्मक सोच से हम लगातार ऊर्जावान बने रह सकते हैं। हमारे देश में बिग-बी जैसे लोग उसकी मिसाल हैं। ऐसा नहीं कि वे सिर्फ कमाने के लिये काम कर रहे हैं। उन्हीं के शब्दों में उन्हें काम करने का अवसर मिलना उनकी काम करने की वजह है। देश के उम्रदराज ही नहीं, हर वर्ग के लोगों के लिये अमिताभ बच्चन प्रेरणा की मिसाल हैं। यह संदेश भी कि कर्मशील व्यक्ति के लिये उम्र कोई मायने नहीं रखती। जीवन के व्यापक अनुभव उनकी कार्य की गुणवत्ता को निखार देते हैं। यही जीवन का सौंदर्य भी है और लंबी उम्र का राज भी।