मोनिका शर्मा
जीवन, उम्र के हर मोड़ पर उतार-चढ़ाव लिए होता है। ऐसे में मन का ठहराव अच्छी और बुरी दोनों ही परिस्थितियों में काम आता है। यह संयम आमतौर पर आस्था के भाव से बल पाता है। खासकर असफलता के दौर में आस्था धैर्य की सौगात देती है। धीरता का गुण जीवन के हर लक्ष्य को साधना आसान बना देता है। ईश्वरीय शक्ति से जुड़ाव और विश्वास के साथ अपने लक्ष्यों को पाने के मार्ग पर बिना रुके-थके आगे बढ़ते रहना बहुत व्यावहारिक सा भाव है। असल में यह इंसान के मनोविज्ञान को बल देने वाली बात है। हाल ही में पेरिस ओलंपिक में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने वाली भारत की डबल मेडल विजेता निशानेबाज, मनु भाकर ने जीत के बाद भगवत गीता की चर्चा की। मनु भाकर ने कहा- ‘मैंने बहुत सारी गीता पढ़ी। मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि बस वही करो जो तुम्हें करना है। आप अपने भाग्य के परिणाम को नियंत्रित नहीं कर सकते।’
निराशा से उबारती सोच
जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। हर बार, हर काम में सफलता ही मिले यह जरूरी नहीं है। असफलता एवं परिस्थितियों से जूझने के हालात भी बनते रहते हैं। जरूरी है तो यह कि अन्तर्मन की शक्ति बनी रहे। आशाओं के प्रकाश से भविष्य की राह रोशन रहे। ध्यान रहे कि पिछले ओलंपिक से पेरिस तक पहुंचने का मनु भाकर का सफर मनोबल तोड़ने वाला रहा है। बहुत सी मुश्किलें उनके हिस्से आईं। टोक्यो ओलंपिक में मनु की पिस्टल में खराबी आने से पदक पाने से चूक गई थीं। जिसके चलते वे लंबे समय तक अवसाद के दौर से गुजरीं। इन परिस्थितियों में मनु ने गीता पढ़ी। कर्मशील रहने की सीख देने वाली गीता पढ़कर अपने मन को सही दिशा दी। योग से तनाव को हराया और मन को अपने लक्ष्य पर केंद्रित करने में सफलता पाई। पेरिस में पदक जीतने के बाद मनु ने कहा कि ‘मेरे दिमाग में गीता के श्लोक चल रहे थे। मैंने कर्म पर फोकस किया, फल की चिंता नहीं की। इसीलिए मेरे दिमाग में चल रहा था कि वह करो जो आप कर सकते हो और मैंने वही किया।’ यह सचमुच जीवन में उतारने योग्य बात है। कर्मशील रहने वाले लोग कामयाबी तो पाते ही हैं, इस राह में आने वाले उतार-चढ़ावों को झेलने की शक्ति भी जुटा लेते हैं। यही कारण है कि देश की युवा खिलाड़ी की सफल होने की प्रतिबद्धता और सोच की सकारात्मक दिशा, दोनों ही युवाओं के लिए प्रेरणादायी हैं।
मन के जीते जीत
युवाओं को यह समझना होगा कि मन की शक्ति से बढ़कर कुछ नहीं। इस बल को पाने और बनाए रखने के लिए मन-जीवन का एक सकारात्मक आधार चुनें। यह बुनियाद आपका परिवार, आध्यात्म, योग या आशावादी सोच, कुछ भी हो सकता है। दरअसल, अंतर्मन की शक्ति को साधने के लिए अपने भीतर विश्वास की एक मजबूत नींव बेहद आवश्यक है। इंसान किसी क्षेत्र से जुड़ा हो, हर बार सफलता हाथ नहीं आती। ठीक इसी तरह बुरा समय भी हमेशा नहीं रहता। आवश्यक है तो यह कि तकलीफ के दौर में खुद को तराशने का काम जारी रहे। कर्मठता का पाठ पढ़ाने वाली गीता यही संदेश देती है। अपने दुःखों और संघर्षों को मन की शक्ति के बल पर पार करने का पाठ पढ़ाती है। जो कि दुःख और टूटन के दौर में भी संयम, समर्पण और निष्ठा के साथ अपना कर्म करते रहने के भाव से जुड़ा पहलू है। किसी भी इंसान की आत्मिक उन्नति का सबसे सुंदर पक्ष है। गीता में कहा भी गया है कि ‘जीवन के हर एक कदम पर हमारी सोच, हमारा व्यवहार और हमारा कर्म ही हमारा भाग्य लिखते हैं।’ ऐसे में नाकामयाबी के समय भी ठहराव में गुम होने या खुद को खो देने के बजाय गतिशील रहने का भाव ही एक दिन विजेता बनाता है|
अवसाद नहीं, आशाएं चुनें
असफलता के दौर में बहुत से युवा जीवन से ही हार मान लेते हैं। कितने ही लोग अवसाद के घेरे में आ जाते हैं। यही वजह है कि सधी जीवनशैली और सार्थक प्रयास कामयाबी ही नहीं नाकामयाबी के दौर में भी जारी रखने की दरकार होती है। खुद को निखारते-संवारते रहने की कोशिशें जीवन से जोड़ने वाली साबित होती हैं। भगवद्गीता में भी अनुशासन और स्व-नियंत्रण के महत्व को बहुत सहज ढंग से समझाया गया है। जीवन के कई मोर्चों पर संयम, संतुलन और प्रबंधन की शिक्षा भी शामिल है। युवाओं को संयमित जीवनशैली अपनाने व सकारात्मक बने रहने की दरकार है। गीता में कहा गया है कि ‘आप वापस नहीं जा सकते हैं और न ही शुरुआत को बदल सकते हैं लेकिन जहां हैं, वहीं से शुरू कर सकते हैं और अंत को बदल सकते हैं।’ देश, समाज का भविष्य कहे जाने वाले युवाओं के जीवन में तो ऐसी उम्मीद भरी बातों की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यही भाव सकारात्मक ऊर्जा से मन को सही मार्ग पर रखते हुए आगे ले जाने वाले हैं।