भारत के राज्यों में महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जिसे कॉरपोरेट के मामले में सबसे आगे माना तो जाता ही है, यहां उद्योग-धंधों में भी लगातार बढ़ोतरी होती रही है। इसलिए इसे भारत की वाणिज्यिक राजधानी कहा जाता है। पिछले दस सालों के आंकड़े बता रहे हैं कि वहां उद्योगों की स्थिति पहले से कहीं बेहतर है। इस दौरान जब सरकारों में बदलाव हुआ तो कुछ व्यवधान जरूर आया लेकिन स्थिति फिर से पहले जैसी हो गई। महाराष्ट्र की एक खासियत यह है कि इस राज्य ने बहुत बड़े पैमाने पर प्रवासियों को अपने यहां रोजगार दिया है और उन्हें बराबरी का दर्जा भी दिया जिससे वे भी फल-फूल सकें।
लेकिन अभी राज्य में जिस तरह से जातिवादी आंदोलन शुरू कराया गया, वह इसके विकास के लिए ठीक नहीं है। उद्योगपति हमेशा शांतिपूर्ण तरीके से अपना काम करना चाहता है और किसी तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहता है। उद्योगों के सुचारु रूप से चलने के लिए यह पहली शर्त है। किसी भी तरह का राजनीतिक या बड़ा सामाजिक विवाद व्यवधान पैदा करता है जैसा हमने बिहार में देखा। वहां ये दोनों हुए और देश का एक संपन्न राज्य देश का सबसे पिछड़ा राज्य बन गया। राजनीतिज्ञों की दबंगई और आरक्षण आंदोलनों के कारण फैली कटुता ने राज्य को बर्बाद कर दिया। यह देखा जा रहा है कि राजनीतिज्ञ ही ज्यादातर मामलों में सामाजिक विवादों को सुलगाते हैं और बढ़ावा देते हैं। इससे राज्य के सामान्य जीवन पर भी असर पड़ता है और उसका असर काम-धंधे तक जाता है। हरियाणा में जाट और गैर-जाट का विवाद कोई नया नहीं है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसे खासी हवा दी गई जिससे राज्य में कई बार आंदोलन हुए और इसका असर उद्योग-धंधों पर भी पड़ा। जाट आरक्षण के नाम पर वहां बहुत उग्र आंदोलन हुए। इसका असर यह हुआ कि कई उद्योगपति, कारखानेदार और कारोबारी राज्य को छोड़कर उत्तराखंड चले गये जहां की सरकार ने आगे बढ़कर उनके लिए कई तरह के कन्सेशन दिये। हरियाणा में यूनियनों के भी उग्र आंदोलन हुए जिन्होंने राज्य के औद्योगिक विकास पर भी असर डाला। हरियाणा को इस बात का गौरव प्राप्त था कि वहां देश का सबसे बड़ा कार कारखाना स्थित है लेकिन यूनियनों के उग्र रूप के कारण कंपनी ने अपने विस्तार का काम रोक दिया। इन दोनों तत्वों के कारण राज्य में उद्योगों का लगना काफी कम हो गया। जातिवाद से हरियाणा को जो क्षति हुई उसका आकलन करना भी मुश्किल है।
जब गुजरात में पाटीदारों का आंदोलन हुआ तो वहां भी 2015 में यह उग्र हो गया। सारे राज्य में इसकी आग फैल गई। हिंसा और तोड़फोड़ हुई। यह आंदोलन 2019 तक बदस्तूर चला और उसके दुष्परिणाम सबने देखे। उद्योग-धंधों पर असर तो पड़ा ही, समाज कई भागों में बंट गया जिससे काफी नुकसान हुआ। लेकिन बाद में राज्य सरकार ने केन्द्र के सहयोग से उस पर काबू पा लिया। अब तो गुजरात तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है और कई बड़े कारखाने वहां लगे क्योंकि उद्योगपतियों को वहां का माहौल ठीक लग रहा है। यही बात तमिलनाडु पर भी लागू होती है जो देश का सबसे ज्यादा उद्योगों वाला राज्य है। वहां सत्ता के लिए राजनीतिज्ञ सभी तरह के तौर-तरीके तो अपनाते हैं लेकिन सड़कों पर उग्र ढंग से उतरने के लिए जनता को नहीं उकसाते हैं। वहां का कारोबारी माहौल कंपनियों खासकर विदेशी कंपनियों को रास आता है। दरअसल, उद्योग-धंधे लगाने के लिए एक खास किस्म का माहौल चाहिए होता है।
अगर हम अतीत में जायें तो पायेंगे कि नब्बे के दशक में आर्थिक सुधारों की घोषणा के बाद हरियाणा में उद्योग लगाने वालों की कतार खड़ी हो गई थी। वहां के शांत माहौल और दिल्ली से नजदीक होने के कारण वहां कई छोटे-बड़े कारखाने लगे। विदेशी निवेश भी वहां खूब आया। यह सिलसिला चलता गया और इसी क्रम में एक मॉडर्न शहर गुड़गांव उभर कर सामने आया जहां रियल एस्टेट का कारोबार खूब फला-फूला। लेकिन अब कारखाने लगने बंद से हो गये हैं। संकीर्णता के आंदोलन और जमीन के बढ़ते भाव के कारण पूंजीपति पैसा लगाने को अब तैयार नहीं हैं। उन्हें लाने के लिए उन्हें इंसेंटिव देना और माहौल को सुधारना जरूरी है। लेकिन सुधारेगा कौन और सुधरेगा कैसे? इसके लिए तो राजनीतिज्ञों को सामने आना होगा।
महाराष्ट्र में इस समय कई बड़े और छोटे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। उनमें से कई समाप्ति की ओर अग्रसर हैं। इस राज्य में काफी क्षमता है और यह एक्सपोर्ट का हब बन सकता है क्योंकि इसके पास सभी तत्व मौजूद हैं। समुद्र के तट पर यह राज्य बसा है और यहां कई बड़े तथा छोटे बंदरगाह भी हैं जो निर्यात के लिए उपयुक्त हैं। ऐसे में इस तरह के उद्योगों को बढ़ावा दिया जाये जो निर्यात योग्य सामग्री बनाते हों। ऐसा करना जरूरी है क्योंकि इससे न केवल राज्य के उद्योगों का ग्राफ बढ़ेगा बल्कि रोजगार भी। आज देश को ऐसे उद्योंगों की सख्त जरूरत है जो रोजगार दे सकें। मुंबई भारत का सबसे ज्यादा आबादी घनत्व वाला राज्य है, वहां हर वर्ग किलोमीटर में 76,790 लोग रहते हैं। लेकिन इसके बावजूद यहां जिंदगी चल रही है और इसका श्रेय वहां के मेहनतकश लोगों को जाता है जो जिंदगी को एक चुनौती मानकर चल रहे हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।