बेगूसराय के राघवेंद्र (बदला हुआ नाम), बंगलुरु की एक मल्टीनेशनल कंपनी में डाटा एनालिस्ट थे। साल 2022 में सिंगापुर की किसी कंपनी ने दो हज़ार डॉलर प्रति महीने का जॉब ऑफर किया, साथ में रहना-खाना फ्री। ऑनलाइन अप्लाई, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये सेलेक्ट होने के बाद, राघवेंद्र को सिंगापुर की कंपनी ने बताया, कि तीन महीने के प्रोबेशन पीरियड में आपको कम्बोडिया की राजधानी पोनोम पेन में रहना होगा। राघवेंद्र पहले बैंकॉक उतरे, और फिर वहां से उन्हें बाई रोड कम्बोडिया की पोर्ट सिटी, सीएनकविल ले जाया गया। वह एक ऐसी जगह थी, जहां रहना-खाना सबकुछ उसी कैम्पस में। वहीं 18 घंटे रोज़ का काम। और जो काम बताया गया, उसे यदि करने से मना करने की हिमाक़त की, तो जमकर पिटाई या इलेक्ट्रिक शॉक।
पहले दिन ही राघवेंद्र को पता चल गया, कि उसे डाटा एनालिसिस नहीं, बल्कि साइबर ठगी का काम करना है। उसने वहां से जाने की कोशिश की, तो उसे बताया गया कि वह वहां से नहीं जा सकता। कारण? उसे सिंगापुर वाली तथाकथित कंपनी ने 12,000 डॉलर में बेच दिया था, और अब वह तब तक उनका था, जब तक कि वह ब्याज समेत पूरा पैसा वापस नहीं कर देता। तीन महीने के अंदर राघवेंद्र की क़ीमत बढ़ती चली गई। पहली कंपनी ने 12,000 डॉलर का भुगतान किया था, फिर उसे दूसरी कंपनी ने 16,700 डॉलर में ख़रीदा, अगले महीने तीसरी कंपनी ने 18,000 डॉलर का भुगतान किया, और तीसरे ठिकाने पर ले जाकर साइबर स्कैम का ही काम करवाते रहे। राघवेंद्र अब साइबर ग़ुलाम बन चुका था। उसकी ख़रीद-बिक्री उसी बंदरगाह शहर सीएनकविल में होती रही। राघवेंद्र वहां से कैसे निकला उसकी कहानी लम्बी है, मगर कुछ महीनों बाद जिन 14 लोगों का वीडियो मैसेज वायरल हुआ, उनमें से एक शख्स ‘राघवेंद्र’ भी था।
क्या है उस वीडियो क्लिप में? आप यूट्यूब खोलकर सुन सकते हैं- ‘हम लोग कम्बोडिया में हैं। एक महीना-दो महीना, किसी का तीन महीना हो चुका है यहां पर। हम लोगों का रेस्क्यू किया गया है। उसके बाद, कम्बोडिया पुलिस ने पांच दिनों तक लॉकअप में रखा, बाद में एक एनजीओ को सौंप दिया। यहां हमें स्कैम के जॉब में लगा दिया गया था। हमें मालूम नहीं था। कंप्यूटर डाटा इंट्री जॉब कहकर हमें बुलाया गया था, और स्कैम के जॉब में लगा दिया गया था। हमें प्रताड़ित किया जा रहा था। इसलिए इंडियन एम्बेसी से हमारी गुज़ारिश है कि जल्द से जल्द हमें रिहा करवाया जाये और इंडिया हमारे घर सुरक्षित पहुंचाने का इंतज़ाम करवाया जाये। टोटल हम 14 बन्दे हैं, जिनका रेस्क्यू किया गया है। हम अपने घर जाना चाहते हैं। ये कह रहे हैं कि तीन महीने का प्रोसेस है। इंडियन एम्बेसी और भारत सरकार से आग्रह है, कि जल्द से जल्द हमें घर पहुंचा दिया जाये।’
31 मार्च 2024 तक भारतीय विदेश मंत्रालय ने कंबोडिया में साइबर रोजगार घोटाले के शिकार लगभग 250 भारतीय नागरिकों को बचाया, और उन्हें उनके घर वापस भेजा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पुष्टि की थी, कि इनमें से 75 व्यक्तियों को जनवरी से मार्च 2024 के दरम्यान बचाया गया था। कंबोडिया में 5,000 से अधिक वैसे भारतीय आईटी एक्सपर्ट पकड़े गए, जिन्हें हाई सेलरी और सुविधाओं वाले रोज़गार के धोखे में फंसाया गया, और साइबर घोटाले के लिए मजबूर किया गया।
भारत से बड़ी रकम की लूट
सरकार का अनुमान है कि चीनी और उनके साझीदार ग्लोबल साइबर ‘फ्राडियों’ ने आईटी एक्सपर्ट के ज़रिये पिछले सात-आठ महीनों में भारत से कम से कम 5000 करोड़ रुपये ठगे हैं। भारत से फंसाकर लाये गये ये साइबर बंदी अपने ही देश के मालदार लोगों का शिकार करते हैं। इन्होंने कभी-कभी प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों का रूप धारण करके, तो कभी आयकर विभाग का डर दिखाकर, अपने ही देशवासियों को ठगा था। और ये सारी कहानी केवल कम्बोडिया की ही नहीं है, आज की तारीख़ में दक्षिण-पूर्व व मध्य एशिया के कई देश ऐसे साइबर लुटेरों का ‘जामतारा’ बन चुके हैं। – पुष्परंजन