शिखर चंद जैन
दो दिन पहले ही मेघा लंबे समय बाद पीहर आई थी। साथ में उसका 4 साल का बेटा अभिनव भी आया था। मेघा की मम्मी ने देखा कि अभिनव को जब तक हाथ में मोबाइल न दो तब तक वह खाना भी नहीं खाता। यूट्यूब पर कार्टून देखता रहता है और मेघा उसे अपने हाथों से खाना खिलाती है। अभिनव की रुचि खेलने-कूदने या बाहर जाने में नहीं। यानी डिजिटल एडिक्शन। बस दिनभर मोबाइल में गाने सुनता है ,कार्टून देखता है या फिर गेम खेलता है। मम्मी ने मेघा से इस बात का जिक्र किया तो बोली, ‘क्या करूं मम्मी मैं तो समझाकर, डांटकर थक गई। मानता ही नहीं।’ मम्मी लगभग डांटते हुए बोली , ‘मानेगा कैसे? तेरा भी तो यही हाल है! दिन भर रील्स देखती है, इंस्टाग्राम और फेसबुक में लगी रहती है। बच्चे तो अपने मां-बाप से या भाई-बहन से ही अच्छी-बुरी चीज़ सीखते हैं। पहले आप खुद तो सुधरें।’ सही भी है, बच्चों को हम डिजिटल दुनिया से दूर रहना तभी सिखा सकेंगे जब हम सीखेंगे। बता दें कि डिजिटल एडिक्शन अपनी भावनाओं का खुद के नियंत्रण से बाहर होना है जिसमें व्यक्ति डिजिटल गैजेट्स, प्रौद्योगिकियों और प्लेटफ़ॉर्म का जुनून की हद तक इस्तेमाल करने लगता है। इसमें इंटरनेट, वीडियो गेम, मोबाइल व लैपटॉप और सोशल नेटवर्क प्लेटफ़ॉर्म का बेतहाशा उपयोग शामिल है।
डिजिटल एडिक्शन के दुष्प्रभाव
आज हर कोई मोबाइल ,टीवी या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से परेशान है। इससे स्लीप साइकल बिगड़ रहा है। सरकेडियम रिद्म भी प्रभावित हो रहा है। इससे हमारे शरीर में नकारात्मक मानसिक, व्यावहारिक और शारीरिक परिवर्तन हो रहे हैं। हमारी इम्यूनिटी कमजोर हो रही है। लर्निंग पॉवर कम हो रही है। मोटापा, चिड़चिड़ापन, अवसाद, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं मानो हमारे ही खुले निमंत्रण पर हम पर कब्जा करती जा रही हैं। भारत की 30 फ़ीसदी आबादी नींद न आने की समस्या से ग्रस्त हो चुकी है। इससे हमारी क्रियाशीलता और शारीरिक व मानसिक विकास पर भी खराब असर पड़ रहा है। ईयर पीस के ज्यादा इस्तेमाल से श्रवण शक्ति पर बुरा असर पड़ रहा है।
व्यवहार और संवाद पर असर
इस टेक एडिक्शन से घर-परिवार में आपसी संबंधों में भी सरसता व संवेदनशीलता कम हो रही है। अनियंत्रित स्क्रीन टाइम हमारे सामाजिकता व्यवहार और परस्पर संवाद पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक आज औसत रूप से हर व्यक्ति 6. 58 घंटे स्क्रीन पर बिता रहा है। टेक एडिक्शन के कारण हम लंबे समय तक एक ही जगह बैठे रहते हैं।
डिजिटल डिएडिक्शन के उपाय
मोबाइल पर फिजूल कंटेंट से बच्चों को छुटकारा दिलाना बहुत जरूरी है। घर में आप घर में माहौल बदलें। खुद भी मोबाइल रील्स आदि से दूरी बनाएं, डिजिटल डिजिटल डिएडिक्शन का पालन करें और बच्चों को भी सिखाएं। जानिये उपाय-
डिजिटल फ्री टाइम व स्थान
कोई ऐसा स्थान तय करें जहां आप रहेंगे तो सिर्फ कॉल रिसीव करेंगे,स्क्रीन स्क्रोलिंग नहीं करेंगे। या फिर कोई समय तय करें जब आप फोन या टीवी की तरफ ध्यान नहीं देंगे। आप इस टाइम सिर्फ बातें करेंगे, किताबें पढ़ेंगे या जरूरी काम करेंगे।
बनाएं स्क्रीन टाइम टेबल
घर में कुछ ऐसे नियम बनाएं कि हर कोई अपनी उम्र के मुताबिक स्मार्टफोन या गैजेट्स में इन्वॉल्व हो। बाकी समय सब अपने रूटीन काम करें। बच्चे खेलें-कूदें और पढ़ाई करें, बड़े आपस में पारिवारिक मुद्दे डिस्कस करें व अपनी व्यावसायिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाएं।
बच्चों को क्रिएटिव विकल्प भी दें
जब आप बच्चों को स्मार्टफोन से दूर करेंगी तो उन्हें एक खालीपन और बोरियत महसूस होगी। इसके लिए उन्हें कुछ एंटरटेनिंग, क्रिएटिव और ज्ञानवर्धक आइडिया दें। जैसे कविताएं या कहानी पढ़ना, प्रेरक प्रसंग या महापुरुषों की जीवनी पढ़ना, पहेलियां सुलझाना, चेस या लूडो जैसे बोर्ड गेम्स खेलना, आउटडोर एक्टिविटीज और भागदौड़ वाले खेल खेलना आदि पर ध्यान दें।
चिंता विशेषज्ञों की
बच्चों के डिजिटल बिहेवियर से जुड़ी जो बात व्यवहार विशेषज्ञों को परेशान कर रही है वह है 10 से 17 आयु वर्ग के बच्चों में अत्यधिक वीडियो गेम्स खेलने की प्रवृत्ति, हिंसक या फिजूल रील्स देखने और उनकी नकल करके खुद रील बनाने की प्रवृत्ति और पोर्नोग्राफी देखने की लत। क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कहते हैं कि पैरेंट्स को इस पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। डांटने पर बात बिगड़ेगी। बेहतर होगा कि बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं। उनकी भावनाओं को जानें, बात सुनें और समझें। उनसे अपने अनुभव शेयर करें ताकि वे अकेलेपन से उबरने के लिए डिजिटल दुनिया का सहारा न लें।