भारत डोगरा
आज सबसे धनी, विशेषकर पश्चिमी देशों के प्रति युवाओं में जबरदस्त आकर्षण है। अनेक युवाओं को लगता है कि किसी भी तरह यदि वहां पहुंच जाएं तो जिंदगी संवर जाएगी। यहां तक कि कभी-कभी वे और उनके परिवार इसके लिए जमीन-जायदाद तक बेचने को तैयार हो जाते हैं। इतना ही नहीं, अवैध रास्तों से और गैर-कानूनी तौर-तरीकों के साथ तरह-तरह के जोखिम उठाते हैं। उनकी इस आकांक्षा को निरंतर हवा देने के लिए एजेंटों और दलालों की एक पूरी फौज खड़ी कर दी गई है, जो करोड़ों कमा रही है।
इस स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि अति धनी, विशेषकर पश्चिमी देशों के विषय में संतुलित जानकारी प्राप्त की जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि संयुक्त राज्य अमेरिका (संक्षेप में अमेरिका), कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे देशों की प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक है और वहां शहरों की चकाचौंध भी बहुत अधिक है। पर इस चकाचौंध का एक दूसरा पक्ष भी है, जिसे जानना चाहिए।
सबसे धनी देश अमेरिका की ही बात करें तो वहां के नीचे के 50 प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 2 प्रतिशत से भी कम हिस्सा है। राष्ट्रीय बजट का बड़ा हिस्सा सैन्य खर्च पर जाता है। एक वर्ष में 880 अरब डॉलर सैन्य खर्च का सरकारी आंकड़ा है, जबकि इससे कई सैन्य खर्च छूट जाते हैं। अरबन इंस्टीट्यूट के अनुसार, 40 प्रतिशत लोगों के लिए किसी न किसी जरूरत के खर्च को जुटाने में कठिनाई है। किराए पर रहने वाले अधिकांश परिवारों के लिए भी कठिनाई है। लगभग साढ़े छह लाख बेघर लोग हैं। एक वर्ष में 37 लाख लोगों को किराए के घर से जबरन हटाया जाता है।
अमेरिका में 50 प्रतिशत विवाहों का अंत तलाक से होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार (यूथ रिस्क बिहेवियर सर्वे) के अनुसार हाई स्कूल के 42 प्रतिशत छात्र प्रायः दुखी और निराश स्थिति में पाए गए, जबकि एक वर्ष में इनमें से 10 प्रतिशत ने आत्महत्या का प्रयास किया। यदि केवल छात्राओं के आंकड़े देखें तो 57 प्रतिशत दुखी और निराश पाई गईं, जबकि 13 प्रतिशत ने एक वर्ष में आत्महत्या का प्रयास किया। 18 प्रतिशत छात्राओं ने यह भी कहा कि उनसे यौन हिंसा या जबरदस्ती का कोई न कोई प्रयास एक वर्ष में किया गया। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े डॉक्टरों के संगठन बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य के संदर्भ में आपात स्थिति घोषित करने के बारे में कह चुके हैं।
यूथ रिस्क बिहेवियर सर्वे के जो चौंकाने वाले आंकड़े ऊपर दिए गए हैं, वे हर कुछ वर्ष बाद के सर्वेक्षण के बाद एकत्र किए जाते हैं और पिछले लगभग एक दशक से बढ़ते ही जा रहे हैं, जबकि हर सर्वेक्षण के वक्त स्थिति सुधारने के प्रयास करने के बारे में कहा जाता है। चाहे घरेलू हिंसा को देखें या यौन अपराधों को या अन्य तरह की हिंसा को, संयुक्त राज्य अमेरिका के आंकड़े डराने वाले हैं। यदि जनसंख्या में कैदियों के प्रतिशत को देखें तो विश्व के प्रमुख देशों में यहां का प्रतिशत सबसे अधिक है।
सामाजिक स्तर पर भेदभाव को देखें तो अश्वेतों और प्रवासियों को कई तरह का अन्याय सहना पड़ता है। कम मजदूरी के कठिन श्रम में इनका प्रतिशत अधिक है। श्रम-शक्ति के सबसे निचले हिस्से में शोषण अधिक है और दिन-भर की मेहनत के बाद भी गुजर-बसर कठिन होती है। बारबारा एहरनरिच नामक विख्यात महिला पत्रकार ने इस स्थिति को राष्ट्रीय स्तर पर दर्शाने के लिए स्वयं कम मजदूरी वाले तीन रोजगार कुछ सप्ताहों के लिए किए और अपने अनुभवों के आधार पर ‘निकेल एंड डाइम्ड’ नामक पुस्तक लिखी जिससे पता चलता है कि निचले स्तर जैसे सफाईकर्मी या वेटर के स्तर पर किसी महिला मजदूर को कितनी कठिन जिंदगी गुजारनी पड़ती है।
अतः बेहतर होगा कि किसी बाहरी चकाचौंध के चक्कर में रहने के स्थान पर हमारे युवा धनी पश्चिमी देशों के बारे में संतुलित दृष्टिकोण प्राप्त करें। कहीं ऐसा न हो कि वहां जाकर नीचे की श्रेणी में उन्हें अन्याय सहना पड़े। यदि उनके सपने वहां भी पूरे न हों, तो फिर जमीन-जायदाद बेचकर या विभिन्न अन्य कठिनाइयां सहकर वहां जाने से क्या लाभ? इससे कहीं अच्छा होगा कि बहुत चमक-दमक या विलासिता के जीवन के मोह को छोड़ ही दिया जाए और अपनी मेहनत से अपनी रुचि और क्षमता के अनुकूल उचित आजीविका अपने देश में ही अपनाई जाए। इसका अर्थ यह नहीं है कि विदेश में जाने में कोई बुराई है, वहां अवश्य जाएं पर यदि बेहतरी की कोई निश्चित राह आपको नजर आए और इसके लिए जमीन-जायदाद बेचने जैसी गलती न करनी पड़े।
ऊंची आय की या सरकारी नौकरी की प्रतीक्षा में ही बहुत सी उम्र गुजार देना भी उचित नहीं है। हमें यह भी सोचना चाहिए कि कई तरह के ऐसे सार्थक कार्य हो सकते हैं जो टिकाऊ हैं, हमारी रुचि और क्षमता के अनुकूल हैं और बेहतर समाज और देश बनाने में भी सहायक हैं। इस तरह के कार्यों में स्व-रोजगार को आगे बढ़ाना भी समाज और देश के लिए बहुत जरूरी है।