जुपिंदरजीत सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 26 अगस्त
रोपड़ के चमकौर साहिब के एक गांव में दूध बेचने वाले से उठकर 1.83 लाख करोड़ रुपये की ‘पर्ल ग्रुप ऑफ कंपनीज’ चलाने वाले निर्मल भंगू की तिहाड़ जेल में तबीयत बिगड़ने के बाद दिल्ली के एक अस्पताल में पुलिस हिरासत में एकाकी मौत हो गई। निर्मल भंगू ने 2011 में एक सड़क दुर्घटना में अपने बेटे को खो दिया था और उनकी दो बेटियां हैं, जो ऑस्ट्रेलिया में हैं। उनकी पत्नी प्रेम कौर भी जेल में है।
भंगू की चिटफंड योजनाओं ने कथित तौर पर 5.5 करोड़ से अधिक निवेशकों को लगभग 45,000 करोड़ रुपये (निवेशकों के अनुसार 60,000 करोड़ रुपये) का चूना लगाया। अब तक 21 लाख निवेशकों को उनके निवेश का रिफंड मिल चुका है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में 2015 में जस्टिस लोढ़ा समिति का गठन किया गया था ताकि सारे मामले की निगरानी की जा सके और पर्ल ग्रुप की फ्रीज हुई संपत्तियों को बेचकर निवेशकों को रकम लौटाई जा सके।
इन निवेशकों ने ‘ऑल इन्वेस्टर सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन’ नामक एक संगठन बनाया हुआ है और बहुत से निवेशकों को अभी तक रिफंड न मिलने के विरोध में धरने प्रदर्शन आयोजित किये जा रहे हैं।
संगठन के प्रवक्ता दर्शन सिंह ने कहा कि अगला धरना 6 सितंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर दिया जायेगा। उन्होंने कहा, ‘अभी तक केवल उन 21 लाख निवेशकों को मुआवजा दिया गया, जिन्होंने 19,000 रुपये का छोटा-सा निवेश किया था।’ दर्शन सिंह ने किस्तों में 50 लाख रुपये का निवेश किया था। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने अपनी जीवन भर की बचत खो दी।
पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के समय भंगू एक बड़े नेता थे। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अपने होटल का प्रचार करने के लिए प्रसिद्ध क्रिकेटर ब्रेट ली को शामिल किया था। इसके अलावा कबड्डी टूर्नामेंट के लिए 35 करोड़ रुपये खर्च किये थे। भंगू ने सुपर फाइट लीग तथा गोल्फ लीग में भी फंडिंग की थी। जब घोटाले का भंडाफोड़ हुआ तो वह जेल के बजाय मोहाली के एक निजी अस्पताल में रहे। जब इस बारे में ‘द ट्रिब्यून’ ने खुलासा किया तो उन्हें जेल भेज दिया गया।
भंगू अपने युवा दिनों में रोपड़ के चमकौर साहिब में अटारी के पास बेला गांव में घर-घर दूध बेचा करते थे। फिर 1970 के दशक के आखिर में वह कोलकाता चले गये और एक चिट फंड कंपनी ‘पीयरलेस’ और बाद में ‘गोल्डन फॉरेस्ट इंडिया लिमिटेड’ के लिए काम किया। यहीं से उन्होंने चिटफंड कारोबार की बारीकियां सीखीं।
1980 में, भंगू ने पर्ल्स गोल्डन फॉरेस्ट लिमिटेड (पीजीएफएल) की स्थापना की। कंपनी ने सागौन के बागानों में निवेश पर उच्च रिटर्न का वादा किया था। 1982 में उन्होंने पर्ल्स एग्रोटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड (पीएसीएल) नामक अपनी खुद की कंपनी की स्थापना की। 1996 तक उन्होंने काफी संपत्ति अर्जित कर ली थी, लेकिन आयकर अधिकारियों की जांच के कारण उन्हें कंपनी बंद करनी पड़ी।
वर्ष 2016 में सीबीआई ने भंगू और उसके कई सहयोगियों को गिरफ्तार किया। ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत भी मामले दर्ज किए। सेबी ने कंपनी को अपनी योजनाएं बंद करने और निवेशकों को 49,100 करोड़ रुपये वापस करने का आदेश दिया। इन प्रयासों के बावजूद, कई निवेशक अभी भी अपने रिफंड का इंतजार कर रहे हैं।