दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 29 अगस्त
हरियाणा की मौजूदा विधानसभा को भंग किया जा सकता है। नायब सरकार ने 31 अगस्त को राज्य कैबिनेट की बैठक बुलाने का प्रस्ताव किया है। इस संदर्भ में सरकार की ओर से चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कैबिनेट की मीटिंग बुलाने की अनुमति मांगी गयी है। कैबिनेट मीटिंग में या तो विधानसभा को भंग करने का निर्णय लिया जाएगा या फिर विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाने का फैसला होगा। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी इस संदर्भ में केंद्रीय नेतृत्व से भी बातचीत कर रहे हैं।
हालांकि विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले नायब कैबिनेट की तीन बैठकें हो चुकी हैं। आखिरी मीटिंग 17 अगस्त को यानी विधानसभा चुनावों की घोषणा के अगले ही दिन हुई थी। इसी मजबूरी के चलते अब कैबिनेट की मीटिंग बुलाई जा रही है। सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘सरकार चुनावी माहौल में विधानसभा का सत्र बुलाने का जोखिम शायद ही ले। ऐसा इसलिए भी क्योंकि विपक्ष सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने की कोशिश करेगा। ऐसे में कैबिनेट में विधानसभा को भंग करने का निर्णय हो सकता है।’
चुनाव आयोग की ओर से कैबिनेट मीटिंग के लिए परमिशन मिलने में किसी तरह की दिक्कत आती नहीं दिखती। ऐसे में 31 अगस्त को ही कैबिनेट की मीटिंग होने की उम्मीद है। सरकार अगर विधानसभा को भंग करने का फैसला लेती है तो फिर इस बारे में राज्यपाल को सूचित किया जाएगा। राज्यपाल कैबिनेट के फैसले को मंजूरी देंगे। उसके तुरंत बाद से विधानसभा भंग हो जाएगी। ऐसी स्थिति में राज्यपाल की ओर से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व उनकी कैबिनेट को नयी सरकार का गठन होने तक केयरटेकर सरकार के तौर पर जिम्मेदारी दी जाएगी।
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधिवक्ता व विधायी मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने इस संदर्भ में राष्ट्रपति द्रौपर्दी मुर्मू के पास एक याचिका भी भेजी थी। उनका कहना है कि संवैधानिक संकट टालने के लिए या तो सत्र बुलाना होगा, नहीं तो 14वीं विधानसभा को भंग करना होगा।
यह है संवैधानिक मजबूरी
सरकार से जुड़े अंदरूनी सूत्रों को विधानसभा भंग होने की अधिक संभावना लगती है। ऐसा करना संवैधानिक रूप से सरकार की मजबूरी हो गयी है। नियमों के तहत छह महीनों के भीतर विधानसभा का सत्र बुलाया जाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। 12 मार्च को नायब सिंह सैनी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद 13 मार्च को सदन में बहुमत साबित करने के लिए एक दिन का विशेष सत्र बुलाया था। इस हिसाब से 12 सितंबर से पहले विधानसभा का सत्र बुलाना जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 174 (1) में स्पष्ट है कि विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतराल नहीं हो सकता। प्रदेश में आज तक कभी ऐसी स्थिति नहीं आई है कि छह महीने में कोई सत्र न बुलाया गया हो।