जींद, 1 सितंबर (हप्र)
जींद जिले के सफीदों विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज कुछ अलग किस्म का है। इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों ने चुनाव में कभी भी बाहरी उम्मीदवारों को गले नहीं लगाया। जब भी सफीदों से बाहर के किसी प्रत्याशी पर दांव लगाया गया, सफीदों के लोगों ने उसे चुनावी दंगल में धूल चटा दी। सफीदों के मतदाताओं का यही मिजाज रविवार को जजपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले रामकुमार गौतम को डरा रहा है, जिनका नाम सफीदों से भाजपा की टिकट के लिए आजकल चर्चाओं
में है।
सफीदों विधानसभा क्षेत्र को अपनों से बेहद लगाव है और बाहरी को वे कभी गले नहीं लगाते। 1987 में जब चौधरी देवीलाल और उनकी लोकदल की आंधी प्रदेश में राजनीतिक तूफान बनी हुई थी, तब चौधरी देवीलाल ने सफीदों से रामचंद्र जांगड़ा को अपनी पार्टी का प्रत्याशी बनाया था।
रामचंद्र जांगड़ा सफीदों के लिए ही नहीं, बल्कि जींद जिले के लिए भी बाहरी थे। चौधरी देवीलाल को तब यह लगता था कि वह जिसे भी अपनी पार्टी की टिकट दे देंगे, उसका विधानसभा में पहुंचना निश्चित है। इसी गुमान में उन्होंने सफीदों के लोगों की भावनाओं को दरकिनार करते हुए रामचंद्र जांगड़ा को सफीदों से चुनावी दंगल में उतार दिया था। चुनावी जंग जब परवान चढ़ने लगी, तब चौधरी देवीलाल को यह एहसास सफीदों के लोगों ने करवा दिया कि रामचंद्र जांगड़ा को वह स्वीकार नहीं करेंगे, तब चौधरी देवीलाल जैसे कद्दावर नेता को भी सफीदों के लोगों की भावनाओं को समझते हुए अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी रामचंद्र जांगड़ा से अपने समर्थन का हाथ वापस खींचकर सफीदों से निर्दलीय प्रत्याशी सरदार सरदूल सिंह का समर्थन करने का ऐलान करना पड़ा था। रामचंद्र जांगड़ा की लोकदल की टिकट पर सफीदों में जमानत 1987 में जब्त हुई थी।
रामकुमार गौतम, जयभगवान शर्मा की जब्त हुई थी जमानत
सफीदों विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं को बाहरी प्रत्याशियों से कितना परहेज है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि 1991 के विधानसभा चुनाव में नारनौंद के रामकुमार गौतम ने सफीदों से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपनी किस्मत आजमाई थी। वे 2000 वोट भी नहीं ले पाए थे। उनकी जमानत जब्त हो गई थी।
इसके बाद 2009 के विधानसभा चुनाव में हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई ने सोनीपत जिले के जय भगवान शर्मा को सफीदों से हजकां प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था। जयभगवान शर्मा युवा हजकां के प्रदेश अध्यक्ष थे। कुलदीप बिश्नोई को लगता था कि जय भगवान शर्मा सफीदों में ब्राह्मण मतदाताओं की बड़ी संख्या के आधार पर शानदार प्रदर्शन करेंगे, लेकिन जय भगवान शर्मा 3000 वोट भी नहीं ले पाए थे, और उनकी जमानत जब्त हो गई थी।
जनता पार्टी की आंधी के बावजूद हारे थे जेके शर्मा
सफीदों ही नहीं, एक दौर में नरवाना विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं को भी बाहरी उम्मीदवार पसंद नहीं आते थे। 1977 में जनता पार्टी की आंधी में जींद जिले के नरवाना विधानसभा क्षेत्र से जेके शर्मा को प्रत्याशी बनाया गया था, जो कांग्रेस के शमशेर सिंह सुरजेवाला के हाथों पराजित हुए थे।
जुलाना में अरविंद शर्मा को मिली थी हार
जींद जिले के जुलाना विधानसभा क्षेत्र से 2014 के विधानसभा चुनाव में बसपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बाहर के अरविंद शर्मा ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन वह बुरी तरह चुनाव हार गए थे।
सुषमा स्वराज की बहन को चटाई थी धूल
सफीदों विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के बाहरी प्रत्याशियों को धूल चटाने के मिजाज को नजर अंदाज करने का जोखिम 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने उठाया था। तब भारतीय जनता पार्टी ने सफीदों से वंदना शर्मा को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था, जो नरवाना से थी और तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बहन थी। वंदना शर्मा के सफीदों में बाहरी होने का नारा चुनाव में चला, और निर्दलीय जसबीर देशवाल ने वंदना शर्मा को पराजित कर दिया था। इससे पहले 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जींद में रहने वाले और मूल रूप से जुलाना विधानसभा क्षेत्र के घिमाना गांव के कर्मवीर सैनी को चुनावी दंगल में उतारा था, जो निर्दलीय बच्चन सिंह आर्य से पराजित हो गए थे।
उचाना और नरवाना में बने बाहर के विधायक
जींद जिले के उचाना कलां और नरवाना विधानसभा क्षेत्रों से बाहर के लोग जरूर विधायक बने हैं। 1993 में हुए नरवाना उपचुनाव में पूर्व सीएम और सिरसा जिले के ओमप्रकाश चौटाला कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला को पराजित कर विधायक बने थे। फरवरी 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में भी नरवाना से ओमप्रकाश चौटाला सीएम रहते विधायक बने थे। जिले के उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र से भी 2009 में पूर्व सीएम और सिरसा जिले के ओमप्रकाश चौटाला और 2019 में सिरसा जिले के दुष्यंत चौटाला विधानसभा में पहुंचे।