स्वामी रामकृष्ण परमहंस सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर सहजता का जीवन जीते थे। उन्हें जीवन की भौतिक वस्तुएं आकर्षित नहीं करती थी। वे अपने शिष्यों को भी विषय-वासना से मुक्त होने की सीख दिया करते थे। एक बार की बात है, एक शिष्य ने कहा, ‘स्वामी जी मैं आज महसूस करता हूं कि रुपये में बड़ी ताकत है। उससे हम कोई भी सुख खरीद सकते हैं।’ परमहंस जी शिष्य की नादानी पर हंसे, और बोले, ‘तुम रुपये से क्या-क्या खरीद सकते हो?’ शिष्य ने जवाब दिया, ‘संसार की सब चीज पैसे से खरीदी जा सकती है।’ परमहंस जी बोले, ‘क्या तुम रुपये से ईश्वर खरीद सकते हो?’ शिष्य इस सवाल का जवाब देने में सक्षम नहीं था। परमहंस जी बोले, ‘रुपया जीवन का साधन हो सकता है, लक्ष्य नहीं हो सकता।’ यह सुनकर शिष्य नतमस्तक हो गया।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा